कविता संगलन
शब्द _ 2
शब्दों को
अब मैने तोला है ,
कुछ को रोका ,
कुछ को बोला है
जो बोला
वो तो शब्दों का छोंका है ,
जो दिल में रोका
वहीं तेरे कर्मो का लेखा जोखा है
सत्य वचन तोहे कटु लगे है
रिश्तों के कमजोर हुए धागे है
शब्द मेरे
चुबते जैसे खंजर है
लगता अब तो जैसे
सदियों से हुआ रिश्ता बंजर है
मिठबोला मैं कभी हुआ नहीं ,
सत्य मुझसे कभी छूटा नहीं-
But by heart poet,
माना कि नासमझ है हम
पर तेरे दिल को पढ़ लेते ह... read more
इस सफर में तेडे मेडे रास्ते🧐🧐
चल पड़ा हूं तेरे वास्ते😍😍
जब सपना देखा तेरे साथ थे🤔🤔
आज दूर खड़ा हूं corona ke वास्ते 😬🤪-
वह बोली ,
पढ़ रही तेरे लेखन को
लगा जैसे लिखा हो मेरे मन को
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मंजिल शिखर सा
ना जाना बिखर सा
ना जाना अटक
ना जाना भटक
क्योंकि
दलदल से रास्ते
बिल्ली की तरह रास्ता लोग काटते
मक्खियों की तरह कान में भिनभिनाते लोग
असफल होने पर चढ़ाते भोग
पर सब बातो से रहे बेफिक्र
हो बस लबो पर मंजिल पाने का जिक्र
फिर मंजिल पर डेरा
तेरा ही तेरा
✍️✍️STROMY AKASH GANGWAR
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नाम
आंखों में दिखता चेहरा तेरा ,
लफजो पर बार-बार नाम तेरा
अब कलम रुक सी गई ,
कहानी वही थम सी गई
चलो इस कहानी को अंजाम देते हैं ,
मिलकर इस जोड़ी को इक नाम देते हैं-
शब्द
शब्दों के बाण में ,
इतना दम है
ना निकले प्राण शरीर से
बस मन में तड़पन हैं
ना दिखे घाब कहीं शरीर में
लगे फिर भी शब्दों की गहरी चोट हैं
-Stromy Akash Gangwar
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मां
सारे सुख मुझे देकर
तुम दुख में कैसे रह लेती हो मां
सारी खुशी मुझे देकर
अपने गम को कैसे छुपा लेती हो मां
मेरे सारे सपनों को आकार देकर
तुम अपने सपनों को कैसे मार देती हो मां
सूट बुट मुझे देकर
तुम साधारण वस्त्र में कैसे रह लेती हो मां
मुझे आंचल में सहारा देकर
तुम तूफान से कैसे मुकाबला कर लेती हो मां
मां बच्चों को इतनी सुविधा भी देकर
कुछ लोग घर से अपनी मां कैसे निकल देते है मां
-stromy Akash gangwar
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बढ़ती उम्र
बढ़ती उम्र ,
बदलता चेहरा ,
साथ में बदलते किरदार ,
हर बार हम असरदार
कभी थे बालक ,
आज हूं चालक
जिम्मेदारियों का बोझ
इसलिए चलता मै संभलकर
क्यूंकि पीछे खड़े तांग खींचने वाले
यह बचपन थोड़ी है बहुत खड़े होंगे उठाने वाले
जो मां तुम्हे संभालती थी ,
वो आज बूढ़ी हो आई है,
संभालू उसको यह जिममेदारी मुझ पर आई है ,
मां - बाप के पैसे खर्चते एक पल भी ना सोचा
पर आज हर एक रुपए का हिसाब रखता हूं
अब मैं हर बात का जवाब रखता हूं
किसी से एक भी लब्ज उधार नहीं रखता हूं
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मेरा तेरे लिए इश्क
बेजुबान सा
करता हूं मै बहुत इशारे
पर मुझे तू लगता नादान सा-