कितना बागी है इश्क़ इस ज़माने में । अगर मिल जाये कहीं, तोे एहतियात बरतना । न तुम पर कोई इसे इस्तेमाल करे , न तुम किसी को खुद पे इस्तेमाल करने देना।
खुदा खैर करे उनकी जिनको इश्क़ है। क्या गलत नहीं है, एक दर पे जिंदगी गुजार देना ? मैंने पढ़ा नहीं है कोई कानून जो क़त्ल-ए-इश्क़ रोके। क्या कभी लाजमी नहीं है , खुदा को भी सजा दे देना ।
कितना बागी है इश्क़ इस ज़माने में । अगर मिल जाये कहीं ये , तोे एहतियात बरतना ।