इतना आसान नहीं होता लड़की बनके रहना,
कितना कुछ नही सहती लड़कियां, बचपन से बुढ़ापे तक सफ़र, बड़ी आसानी से कह देते मर्द कि लड़कियां पागल होती है, एक बार उन पागलपन को जानने के बारे में कभी उन्हें समझने भी चाहा किसी ने,
लड़कियां बचपन से प्यार को बांटती है अपने भाइयों के लिए, लड़की होके ना जाने कितना कुछ नी सहती, अपनी खुशी का बलिदान भी करे तो हस्ती है, आंखों में पानी आए तो अकेले में रोती है, दोस्तों को हसाके फिर से खुद को खड़ा करती है, अपने सपनों की मंजिल ना मिले किसी को चुप चाप अकेले सब सह लेती है, एक बच्चे के जन्म से ना जाने कितना दर्द सहती है ,फिर भी ये लोग कहते है लड़की पागल है, हां हम पागल है ,जिद्दी है, क्योंकि ख़ुदा लड़कियों को इतनी हिम्मत दी है दर्द को हस्ते हस्ते सहने की, ताकी वो शायद किसी से उम्मीद ना रखे, उनके पंख भी काट दिए जाए तो घर को संभालने लगती है, सबको खुश रखती है लेकिन कभी उफ़ तक नही करती, सच में खुदा तूने लड़कियों को कितनी हिम्मत दी है, जिस घर में वो पली बड़ी उससे छोड़ कर दूसरे घरजाती है उस घर को जोड़ने, लेकिन फिर भी उसे वो समान ना मिला ,तो क्या फायदा, मर्द सिर्फ घर चलाता है जब तक ये सोच समाज में रहेगी ,तब तक शायद हर लड़की का सपना टूटे, आज इस दुनिया में जो भी है वो सब एक नारी की शक्ति से है, अगर उस नारी को ही समान नहीं तो बेटों को किसकी कोख से जन्म दोगे, सोच बदलो
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