कुछ मना करे तो लगता है, जाने क्या चाहता है।
पिता जब नहीं रहता तब समझ में आता है।-
Always!!!. ♥️♥️
I was her favourite cup of coffee,
Placed on her table in her little realm.
That she'd created in her room,
With unread books and incomplete poetries.
Longing to be finished with her eyes and her hands.
And then there was me, who she kissed daily,
With a gentle blow and a brisk sip.
Sometimes reading while other perfecting her rhymes.
And here I'm now, a decayed memory untouched,
As an incomplete circle of cup stain on the same table.
Fainted at one end, covered with dust.
And one day, she'll wipe me off the table
And my existence will fade away in oblivion.
What am I?
Just another verse
That neither became a story
Nor poem, let alone poetry!!-
के काश ऐसा हो कि खुदा से भूल हो जाए।
में तुझे दुआ में मांगू, और दुआ कबूल हो जाए।-
मैं तकता हूं बारिश अब खिड़की से बस,
वो चाहत नहीं रही, कि बूंदे भिगाए मुझे।
आज एक अरसे बाद उसके शहर जाना हुआ।
वो ना मिले फखत कहीं दिख जाए मुझे।
और गर रास्ते टकरा भी गए उससे मेरे,
बस पहचान ले, कब कहा गले लगाए मुझे।
एक शाम उसने मिलने का वादा भी किया था,
सो तबसे न रात हुई न नींद आई मुझे।-
महफिल में हैं यारों की।
और हम है जो तन्हा हैं।
एक यारी है जो निभानी है।
और हम इश्क में फना हैं।-
हालात का मेरे अंदाजा न लगाना,
मैं हिज्र की रात रकीब के किस्से सुन रहा था।
धड़कने रुक रही थीं सीना सांस भर रहा था,
मैं मुस्कुरा रहा था, आहिस्ता मर रहा था।
फिर उस हादसे के बाद मुझे नींद मुकम्मल न हुई,
और कोई था जो जागकर भी ख्वाब पूरे कर रहा था।-
हमारे दर्मियां कुछ नही अब बस यादें हैं।
कुछ साथ के किस्से तो कुछ अधूरे वादे हैं।
कुछ बातें हैं जो शायद दोनो कहने से रह गए।
कुछ अधूरे सपने हैं जो फकत आंखों से बह गए।
एक चांद है हमारे दर्मियां जिसे हर रात तकते हैं।
एक बेबसी है जिसे बस दिल में रखते हैं।
कुछ नसाज़िया हैं जिन्होंने रिश्ते को ये मुकाम दिया।
जो मुकम्मल हो सकता था उसे अधूरी ख्वाइश का नाम दिया।
हमारे दर्मियां एक रिश्ता है जिसमे कुछ इस तरह रहते हैं,
जिसे खुद से जायदा जानते है उस ही को अजनबी कहते हैं।
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