सृष्टि रमौल   (सृshti)
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Joined 25 September 2019


Joined 25 September 2019
24 OCT 2022 AT 22:55

ना जाने क्यों है ये,
किसी कि लिये कितना भी करदो..
आख़िर में पूछा जाता है…
तुने किया ही क्या है मेरे लिए,?

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अब वक़्त नहीं है उसके पास,
जो वक़्त बेवक़्त वक़्त निकाला करता था

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17 JAN 2022 AT 20:34

तू भी क्या कमाल है ख़ुदा,
तूने मेरे लिए अपने हाथों से ख़ुदा बनाया है,
और तो रखते हैं मंदिर में,
वो मेरे पास ख़ुद चल के आया है।

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28 MAY 2021 AT 12:44

ना जाने इंसानियत कहाँ ख़ो गयी है,
आज फिर एक लड़की की ज़िंदगी तबाह हो गयी है।

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बदल जाते हैं लोग...,
ना बदलने का वादा कर के।

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कुछ अलग क़िस्म की मोहब्बत निभा रहे हैं वो,
रुला कर हमें मुँह फेरे जा रहे हैं वो।

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10 NOV 2020 AT 23:07

धड़कने सुनी थी उनकी,
दिल में कोई और था जिनके।

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चाहा उसने मुझे....,
बस अपनी चाहतें पूरी होने तक।

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29 OCT 2020 AT 23:27

हाल हमारा पूछने को कोई भी नहीं है,
यूँ कहने को अपने मेरे बहुत है।

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रुतबा तो ख़ामोशियों का होता है,
शब्द तो बदल जाते हैं इंसान देख कर।

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