कभी कभी लोग पुछते हैं
ये खोई खोई सी कहां रहतीं हो अाजकल?
मै ज़रा मुसकुराते हुए कहती हूं..
बस इस दुनिया की भीड़ में,
खुद का आस्तित्व तलाशती रहतीं हूं आजकल।-
उन्होंने दिया नहीं हमे कुछ
सिवाय इंतजार के.....
हमने उनसे चाहा नहीं कुछ
सिवाय प्यार के......-
पहले तो रूठना-मनाना भी था महज एक खेल।
लेकिन अब तो हजारों माफी मांगने के बाद भी,
दुबारा नहीं हो पाता हैं कुछ दोस्तो से हमारा मेल।-
बस बैठे हैं, इसी इंतजार में,
की तुम आओगे!
रूठे है हम आपसे,
कब आओगे और मुझे मनाओगे!
सारी गलतफमियों को दूर कर,
अपने साथ ले जाओगे!
बस बैठें हैं, इसी इंतजार में
कि तुम आओगे!
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अब ना रोको तुम मुझे ज़रा भी,
अब तुम मुझे जाने भी दो।
बहुत हुआ ये रूठने-मनाने का खेल,
तुमने भी बहुत अब मुझे लिया है झेल।
अब मुझे ज़रा खुद में भी खो जाने दो!
अब तुम मुझे रोको ना ज़रा भी,
हां अब तुम मुझे जाने भी दो।।-
उतनी जल्दबाजी नहीं करती हैं,
खुद को बदलने में,
जितना जल्दी - जल्दी वो अपने महबूब बदलती हैं।-
निकला हूं, बड़े आस से,
प्यार के तलाश में।
जीवनसाथी ही हो, ये ज़रूरी नहीं,
बस निकला हूं मै
एक यार की तलाश में....-