समुद्र किनारी उभं राहिलं की कळतं,
आपल्या पायांखाली किती जमीन आहे ते!
"समुंदर किनारे खडे होकर देखो,
पता चलेगा...
आपके पैरों के नीचे कितनी जमीं हैं!"-
शब्दोंके धागे बुनती हूँ...
On Insta with rasika.0202😊
स्नेह तो प्रेम का वह अमूर्त रूप हैं,
जो शब्दों से नहीं, नैनों से छलकती भावनाओंसे
और कृति से ही व्यक्त होता हैं।-
मिट न सके वह दाग भी,
जो हमने ही लगाये थे खुदके दामन पर...
अब दर्पण भी हमें डराता हैं,
तन्हाई छा जाती हैं शाम होनेपर...-
मिट न सके वह दाग भी,
जो हमने ही लगाये थे खुदके दामन पर...
अब दर्पण भी हमें डराता हैं,
तन्हाई छा जाती हैं शाम होनेपर...-
तीच ती झळ जुन्या आठवांची
कशी विसरू चाहुल तुझ्या पावलांची...
तुझे येणे श्रावणासारखे
अवचित झर सुवर्णकणांचे
मिठीत तुझ्या उमललेली
सर सोनेरी गंध-कळयांची...
नको जाऊस सोडून गाव
परक्या मुशाफिरासारखे
जाणीव ठेव धगधगती
वचनांत श्वास-साखळ्यांची...-
कल देखा था मैंने इक सुंदर लाल पुष्प
माँ की बाहों में खिला हुआ।
आज देखा तो जमीं पर उसकी निस्तेज पंखुड़ियाँ,
किसीकी चप्पल के तलें बेरहमी से कुचली जा चुकी थी।-
तू पास नहीं फिर भी तेरे साथ जीती हूँ,
और यह चाहत का फूल महक उठता हैं।
जब जब याद आते हो तुम साजन,
सच कहूं, यह दिल बहक उठता हैं।-
क्यूँ ये मुलाकातों के सिलसिले
तेरी चुलबुली बातों से हैं।
तुम ना मिलो तो पल के फ़ासले
ग़हरी लंबी रातों से हैं।-
यह इश्क़ तेरी सादगी सा हैं,
दर्द में भी ताज़गी सा हैं।
बेचैनी में चैन सा तू,
मौत में भी जिंदगी सा हैं।-
वक़्त बेवक़्त जिसे देखा करते हैं,
इस भरी बेचैनी में, एक सुकून का चेहरा तुम ही तो हो।-