मोह ! एक शब्द है केवल, गहन अर्थ है इसका। कई बार हमें चेताता है ये की हम घिर रहे हैं इससे, लेकिन क्योंकि हम घिरना चाहते हैं तो इस लिए ये जकड़ता जाता है लताओं की तरह, धीरे धीरे, पहले अपनी ओर झुकाता है फिर उतने ही धीरे धीरे कब अपना आदि बना लेता है पता ही नहीं चलता।
मोह के कई कारण, कई किस्से हो सकते हैं। आपका, मेरा, हम सबका मोह हमें प्रतिपल अपनी ओर खींचता है।
चीज़ों का मोह, व्यक्तियों का मोह, धन का मोह, नशे का मोह, प्रेम का मोह यहाँ तक की खुद से भी मोह सिर्फ दुर्बल बनाता चला जाता है।
हम इस प्रतिपल घिरती आ रही दुर्बलता से नहीं कतराते, मोह को आलिंगन में ले सहेजने का प्रयास करते हैं।
मन के कोने में डर छुपा होता है मोह से दूर हो जाने का ...
क्योंकि हम आदि हो चुके हैं किसी चीज़, किसी व्यक्ति,किसी प्रेम, किसी नशे, किसी धन को लेकर।
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