Srishti Singh  
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Joined 3 November 2021


Joined 3 November 2021
4 JUN 2022 AT 21:33

तू चला जाये मगर तेरा न साया जाये
हमने चाहा था कि रिश्ते को निभाया जाये

लौट आई हैं बहारें मेरा दामन भरने
कह दो गुलशन से ये वीरान सजाया जाये

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29 MAY 2022 AT 12:15

ग़ज़ल 22 22 22 22 22 2

रातों की जो नींद चुराने वाले हैं
अब मेरे ख्वाबों में आने वाले हैं

याद पुराने लमहों को कर वे रोए
जख्म मिरे फिर आज बढ़ाने वाले हैं

मुद्दत एक हुई है उनको भी देखे
इन आँखों में जो बस जाने वाले हैं

आज दिखे कुछ कुहरे उनके भी छत पर
जो सूरज को आँख दिखाने वाले हैं

दौरे - गर्दिश मानेगा जाँ लेकर क्या
इसको हम कबतक भरमाने वाले हैं

छोड़ चले यारी दुनियादारी वाली
रिश्ते उल्फ़त से महकाने वाले हैं

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6 MAY 2022 AT 0:10

उसकी दुनिया है पर नहीं हूँ मैं
जानती हूँ उधर नहीं हूँ मैं

मुख्तलिफ सा मिज़ाज रखता है
ये ज़माना, जिधर नहीं हूँ मैं

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4 APR 2022 AT 18:46

सबसे अंत में वे निकाले जाते हैं ज़हन से
उस क्षण टूट जाते हैं तार
वायलन की रुक जाती है झंकार
स्त्रियाँ समेट लेती हैं भावनाएँ
जिस तरह समेटती हैं काम
फुर्सत से आराम करने से पहले।
वे पुरुष हैं
जीत सकते हैं स्त्री से
किंतु हारते हैं स्त्रीत्व से
उनका न होना स्वीकार लिया जाना
उनकी सबसे बड़ी हार है
और इनके लिए सुकून!

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30 MAR 2022 AT 2:01

तुम्हारा ग़म, हमारा ग़म, चलन में है।
कहीं आँसू, कहीं शबनम, चलन में है।

सुकूँ का इक किनारा भागिरथि का है,
दुआओं में कहीं जमजम, चलन में है।

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4 MAR 2022 AT 22:29

तमाम दहशतों के बीच
बचा रहता है प्रेम
जैसे कि उगी रहती है दूब
दहकते गर्म पत्थरों पर

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9 JAN 2022 AT 23:20

जो अहल-ए-इश्क़ हैं अहल-ए-हवस नहीं होते
सबब न पूछ नहीं होते बस नहीं होते
جو اہل عشق ہیں اہل ہوس نہیں ہوتے
سبب نہ پوچھ نہیں ہوتے بس نہیں ہوتے
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फ़ैयाज़ فیاض

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9 JAN 2022 AT 16:39

एक तेरी कमी नहीं जाती
वरना दुनिया रुकी नहीं जाती

उसतरफ है मेरा मक़ाम जिधर
रहगुजर कोई भी नहीं जाती

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29 DEC 2021 AT 12:54

कभी विपरीत रहता है कभी सही रहता
फितरतन वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता

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28 DEC 2021 AT 8:45

ज़ख्म सहते रहें चोट खाते रहें
आप शायर हैं नगमें सुनाते रहें
आंखें करतीं बयाँ हाले-दिल आपका
लब हमेशा भले मुस्कुराते रहें

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