आंखें नज्म जुल्फ रदीफ़ होंठ तुम्हारे क़ाफ़िए से
तुम मुझे मुकम्मल ग़ज़ल से लगते हो ।
ये मेरी दुनिया की हरियाली तुमसे ही है
तेरे बग़ैर सब मरुस्थल सा मुझे लगता है ।
जो प्यासे को भिगो दें पहली बारिश
बारिश की पहली बूंद से तुम मुझे लगते हो ।
इत्र सी महक उठती हूँ तुम्हे छूकर अक़्सर मैं
तुम शंकर के शुद्ध चंदन से मुझे लगते हो ।।— % &
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