मन सूना आँखे भारी ।
दिल हारा आज मैंने इस दुनियाँ से हिम्मत हारी।
बिखर गई हूँ इस कदर मैं,
टुकड़े कितने हुए ये भी खुदसे पूछना भारी।-
अकल की भीड़ में दिल मचलता तो है
मगर उसे फुसलाने का भी हुनर सिख लिया!
ना तुमने आवाज दी ना मैंने मुड़कर देखा तुम्हे
अब जज्बातों ने भी लंबा सफर तय कर लिया...!-
जिंदगी का जो पन्ना इस बार मैंने खोला
उस पर जरा सी शिकन पडीं हुई थी ।
जिंदगी सामने और मौत
पीछे के दरवाजे आकर खडी़ हुई थी।
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मैं भी जिंदा हूँ
कुछ सासें अभी बाकी है ।
कपटी है ये शाम
मगर रगों में रुमानी अभी बाकी है।
क्या हुआ जो ऐतबार बिखर गया
प्यार में पनपती नफरत अभी बाकी है।
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झूठे थे वो मोहब्बत के फसाने
जहाँ महबूब मर भी जाया करते थे
आशिकी कायम रखने के बहाने
मैं गवाह हूँ जनाब
यहाँ जीते-मरते है प्रेम के सौदागर
बस अपना स्वार्थ निभाने..! !
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मेरी दिल ने तुम्हारी नामौजूदगी की दास्ताँ कही है।
कुछ यूँ जुदा हो गए हैं खुदसे तुम्हें मिलकर
ये सांसें भी शरीर को बोझ लगने लगी है।-
हमारे दरमियाँ जो उठ रही थी दीवार
लो उसमें आखीरि ईट भी तुमने लगा दी.. ..
कहानी का अंत लिख दिया है तुमने
खास किरदार की जीते जी जो बली चडा दी.. ..
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दर्द बताना भी नहीं आता
और रात से छुपाया भी नहीं जाता
तुम बदल गए हो जरा सा
ये मंजर आखों से सहा भी नहीं जाता
हमें देख बादलों में खो जाता है चांद भी
दूर है वो बहुत , के उसे मनाया भी नहीं जाता....!-
जब उसके जाने का जिक्र
महफ़िल में हुआ था
हाथों की लकीरों पर उसका नाम ढुँढते थे
जो नसीब में ही ना लिखा था....!!
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Na usey koi chah thi
Na mujhe parwah thi
Fir b na jane aakkho me aasun
Or labon pe usi ki baat thi-