बस यही सोंच कर दिन गुज़ार रही हूं मैं
जैसे कोई कर्ज़ था, जिसे उतार रही हूं मैं
मेरे हिस्से में आए हर वो दिन काटने है मुझे
जिनसे बचने की कोशिश में, लगातार रही हूं में
मैं किस हक़ से सारे इलज़ाम ख़ुदा पे डाल दूं
मैं जानती हूं, सारे काम ख़ुद ही बिगाड़ रही हूं मैं
अब कहीं जी नहीं लगता, बस उम्मीद लगी रहती है
जाने कहाँ है वो अच्छे दिन, जिन्हें निहार रही हूं मैं
और मेरा मुझसे ही फासला, कुछ यूं बढ़ता जा रहा है
की आए दिन ख़ुद ही, खुद को पुकार रही हूं मैं.....
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