अच्छाई हो या हो बुराई,समाई है अंतरात्मा में ;
शरीर में है क्या रखा?है दिखावटी एक मीराज ये! डूबा है कोई पाने में कुछ,तो बैठा है कोई लोभवस उपासना में;
सोच सबके है अलग यहाँ,लक्ष्य भी है अनेक से!
कर्म पथ पर है जो चला,कर सका वही लक्ष्यभेद है; उतार-चढ़ाव, पुष्प-कंकड़ से भरा यह मार्ग है!
ये जीवन है रे,ओ पथिक!आसान नहीं कोई खेल ये; विजय हुआ है बस वही,जो चल सका है इसमें सूझ बूझ से !
विवेक सहनशीलता और संघर्ष जैसे, एहम कई पड़ाव है इस खेल के;
विश्वास बिंदू पर है बस टीका, यहाँ ज़िंदगी की ये रेल रे!
रखना भरोसा केवल स्वयं और अपने आराध्य पे;
शयाद अन्य नहीं कोई सुभचिंतक यहाँ,है तुम्हारे जनक के अतिरिक्त रे!
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