सफ़रनामा   (Mazubaan_shayer)
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Joined 15 March 2020


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Joined 15 March 2020

देखनी हो अगर जन्नत की इरम,
तो तुम अपने गांव चले जाना।

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गुमनाम अंधेरे में बिखरा हुआ सा था मैं,
ढल गए प्यार के सांचे में तेरी निस्बत से।

हल्की सी हवा में बुझने वाली डिबरी सा था,
कवच लगा गया मुझमें तेरी निस्बत से।

वो जो गहरे ज़ख्म लगे थे मुझे माज़ी में,
सारे भर गए इस जिस्म में तेरी निस्बत से।

हवाओं से भरे ज़लज़ले भी कुछ नही करते,
अनोखी ढाल है, तेरा प्यार, तेरी निस्बत से।

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कभी ढेरों खूबियां मुझमें, ढूंढे थे किसी ने
आज मेरी हर बात उन्हें चुभ जाती है।

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इतनी सादगी से हर किसी से मिला न करो।
चेहरे पर पर्दा डाले यहां हर शै अलग है।

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ना कोई दाग आया है नज़र में,
मेरे दिल को टटोला है किसी ने।

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सुनाया जो हमने उन्हें दो मिसरे प्यार के,
बस वहीं से मोहब्बत की शुरआत हो गई।

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मिल गए कई गम,तन्हाई,इन
उजालों में,
मगर खुद से मुलाकात नही
हो पाई।

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पास ठहरने का नियत हो तो ज़िंदगी में आना।
साथ चलने को तो ज़माना तैयार है।

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यूं बेवजह किसी से लड़ने नही देती है।
ज़िम्मेदारी की भी एक बड़ी खूबी है,
ये कभी बिगड़ने नही देती है।

Yun bewazah kisi se ladne nhi deti hai hai.
Jimmedari ki bhi ek badi khoobi hai,
Ye kabhi bigadne nhi deti hai.

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जो भी अपने थे उनमें कुछ टूट गए।
कुछ बिन बातों के ही हमसे रूठ गए।
तन्हा ही रहा मैं ज़िन्दगी की कश्ती में,
कुछ पाने के ललक में, कुछ पीछे छूट गए।

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