कितने दुःख है ज़माने में,
अभी वक्त लगेगा आने में।
सवाल जुनून ए इश्क का है,
लाइन लगी है मयखाने में।
कसीदे पढ़ा जिसके ख़ातिर,
लगी है मुझे आज़माने में।
हाथों में हाथ जरूरी है क्या?
मुसलसल प्यार जताने में।
तेरी सोहबत ही काफ़ी है,
चांद का दिल जलाने में।
कितनी तवज्जोह चाहिए "जुगनू",
अपनी ये गज़ल सुनाने में।
~स्पर्श आनंद "जुगनू"-
Just
Be focused.
22 Dec 🍫🎂
BIT mesra, Ranchi
#Love_lover
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इश्क करने वाले थोड़े मशहूर नज़र आते है,
हाल ए दिल बताने में मजबूर नज़र आते है,
पास आकर मिलो तो हमारी दीवानी हो जाओगी,
दूर से तो हम भी थोड़े मगरूर नज़र आते है।
-
जुगनूओ से मिलाकर आफताब बनाने के लिए,
मैंने चांद को रोक रखा है, एक ख़्वाब बनाने के लिए-
अंधेरे में रौशनी का असर ढूंढ रहे है,
कई मुद्दत से हम अपना घर ढूंढ रहे है,
बज़्म-ए-अंजुम में शामिल हुए अपनों को,
अपनी गलियों में आठों पहर ढूंढ रहे हैं,
सूरज के खिलाफ रौशनी की जंग में,
हम जुगनूओ का हमसफर ढूंढ रहे है,
ये चांद, ये सितारे, तेरी तस्वीर और मैं,
शब-ए-हिज्र काटकर सहर ढूंढ रहे है,
वो जो कभी पानी पर तैर जाया करते थे,
उन्हीं पत्थरों को हम दर-बदर ढूंढ रहे है,
ग़ज़ल लिखना तो अभी सिख रहे है "शायद",
सो उसी के खातिर एक बहर ढूंढ रहे है।-
नींद को भी शायद आज धोखा हुआ हैं,
मुझे तो ख्वाबों ने सोने से रोका हुआ हैं,
तो अब क्या डरना इस सियाह रात से,
जब पास हमने जुगनूओ को रखा हुआ हैं।
बसी हैं मेरी तस्वीर जब से तेरी आंखों में,
मेरा आइना भी तबसे मुझसे रूठा हुआ हैं।
ढूंढता फिरता है चारों तरफ जिसे तू "स्पर्श"
वो कहीं तेरे ही ख्यालों में डूबा हुआ हैं।-
करके आकाश में सुराख वो आया हैं,
एक भाला उसने तबियत से उछाला हैं,
स्वर्ण से तेरे स्वर्ग भी स्वर्णित हुआ हैं,
राष्ट्रगान टैगोर को उसने सुनाया है।
- स्पर्श
-
आंखों में तेरे छुपते, अरमान मैं ढूंढता हूं,
बस तू सोचे और पूरे मैं कर दूं।-
समझदार सी दुनिया में जरा पागल हो जाऊं,
छुपा लूं चांद को अपने पीछे, बादल हो जाऊं।
कई मुद्दत से मैं मुंतजिर हूं एक अजनबी का,
वो ख्वाब में ही आ जाए तो मुकम्मल हो जाऊं।-
वस्ल के दिन का पहर भी हैं,
यहां तेरी नजरों का कहर भी हैं।
हर गली मुझे तेरे पते पर ले जाती हैं,
मेरी तरह ही पागल तेरा ये शहर भी हैं।-