टूटा इस दर्जा हूँ ग़म-ए-हयात ढो-ढो कर
साँस चलती नहीं अब जंज़ीरज़नी होती है
-
★सोज़-ए-दिल
★The Defender of Truth
★ Facebook.com/soz e dil
★ Follow on Instagram👇👇👇
टूटा इस दर्जा हूँ ग़म-ए-हयात ढो-ढो कर
साँस चलती नहीं अब जंज़ीरज़नी होती है
-
मैं फ़ारिग़ नहीं होता हूँ रुदाद-ए-ग़म पढ़ कर
दर पे पैग़ाम नया क़ासिद लिए खड़ा मिलता है
-
اے رات نہ ڈھلنا کہ اجڑ جائے گی زینب
بھائی سے دم صبح بچھڑ جائے گی زیزین-
शुक्र मौलाع करता हूँ अपनी दाल-रोटी पर
मेरा रिज़्क़ इल्म-ओ-हुनर कर्बला से आता है-
न हो जिसमें जहाँ में शुक्र-ओ-सब्र-ओ-वफ़ा
आदमी वो कुछ भी हो हुसैनी हो नहीं सकता
-
मुअय्यन उनका था जाना सर-ए-रह छोड़कर
क्यों क़समें वफ़ा की फिर खिलाया गया मुझे
-
हर लफ्ज़ है पुरनम महवे बुकाँ गिरिया-ओ-मातम
वही है अर्ज़ तजरबात-ओ-हवादिस जो मिला मुझे
-
दर्द ग़म यादें ख़्वाहिशें सबका हुजूम है
तन्हाइयों में भी अब मैं तन्हा नहीं रहता
-
चाहते एक ही वार में कर देते वो खेल तमाम
पर किश्तों में ज़रा ज़रा सा है मारा गया मुझे
-