जब से धागे कातिल हुए हैं।हमने पतंगों से दोस्ती करना छोड़ दिया।।
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जिस घर मैं एक्का नहीं , रोज रहै तकरार नहीं कदे भी हो सकै , उसका बेड़ा पार । उसका बेड़ा पार नहीं हो , दुःख हो मोटा लिछमी भाज्जे दूर , कूदता फिरता टोटा ||
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ऐ-मौसम तू चाहे जितना बदल ले पर इंसानों के बदलने जैसा हुनर तुझमें कभी नहीं आएगा।।
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अश्क बिन ईश्क , ईश्क बिना आशिक , आशिक बिन संसार नहीं शर्म बिन लाज , ज्ञाज बिन मतलब , मतलब बिन कोए यार नहीं । धन बिन दान , दान बिन दाता , दाता बिन जर सुन्ना है । सत बिन मर्द , मर्द बिन तिरया , तिरया बिन घर सुन्ना
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भारत माँ की खातिर तम नै कर दी खतम जवानी । याद करेगी आवण आली पीढ़ी थारी कुरबानी । देस की खातिर जिये सदा तम आए देस कै काम शहीदो तुम नै मेरा प्रणाम !
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“ दो दिन की जिन्दगानी मूर्ख क्यों होर्या मगरूर , काल बली का हुक्म टलैना जाणा पड़े जरुर । तेरे दफ्तर मैं लिखे कसूर घूर कै मनवा लेगा थाणा , साधु राम भजन बिना तेरा कोई नहीं साथी ।। "
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बहुत गज़ब का नज़ारा है इस अजीब सी दुनिया का।लोग सब कुछ बटोरने में लगे हैं खाली हाथ जाने के लिए।।
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मेरे लहजे से ही परखना मुझे ए-दोस्त लोग अक्सर किसी और की राय से मेरा किरदार देखते हैं।।
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मेरे हक में फ़ैंसला हो ये जरूरी नहीं।मैं मेरे हक में हूँ बस इतना काफ़ी है।।
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गलतियाँ कर सकते हैं लेकिन किसी का गलत नहीं।अनजान मंजिलों का अनजान मुसाफिर।।
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