जिस घर मैं एक्का नहीं , रोज रहै तकरार नहीं कदे भी हो सकै , उसका बेड़ा पार । उसका बेड़ा पार नहीं हो , दुःख हो मोटा लिछमी भाज्जे दूर , कूदता फिरता टोटा ||
“ दो दिन की जिन्दगानी मूर्ख क्यों होर्या मगरूर , काल बली का हुक्म टलैना जाणा पड़े जरुर । तेरे दफ्तर मैं लिखे कसूर घूर कै मनवा लेगा थाणा , साधु राम भजन बिना तेरा कोई नहीं साथी ।। "