जलने वालों से मुझे कोई फरियाद तो नहीं ,
मगर कमबख्त ठंड का मौसम तो आने दो!!-
हम अपनों से कहां कुछ छुपाते हैं..
नज़्म होते हैं चंद सब्दो के मेरे,
मगर चार शब्दों में सब कह जाते हैं..
-
अब सुधर गया हूं...
मै गिरने वाला था ,
अब संभहल गया हूं..
लोगों की गिनतियों से,
अब निकल गया हूं...
सदियों से अकेला था,
अकेला ही रह गया हूं..-
चिड़यों के चहक से, जो नींद खुली,
अरसो बाद मेरा परिवार मेरे पास था...
आतंक के इस अनोखे मंज़र पर,
ये वही बचपन का एहसास था...-
Hain lakhon diwane humare ,
Tum hume kulhad se nawaz do.
Aur odh baithe hain jahan sbhi chamakti chadar...
Tum hume chai sa ek sada libas do!!-
थी उस चाहत के चाहत में ,
ना जाने हमने कितने चाहने वाले गवां दिए!!-
अकाल पैदा हुआ था मैं ,
उसने मुझे बचाया है...
जब जब गिरा ज़मीन पर,
उसने मुझे उठाया है...
कलयुग काल में लड़ना ,
उसने मुझे सिखाया है..
गीता के उपदेशों को,
उसने मुझे पढ़ाया है...
जिसे मैंने बचपन से ,
माँ केहकर बुलाया है।।
-Sourav Banerjee
-
होते हैं रिश्ते ..
गलतफहमी की नदी अगर बेहने भी लगे,
तो भरोसे की पुल बांध लो ना!!!!
-Sourav Banerjee-