*अंतिमा* ने मुझसे कहा प्रेम को तुम नहीं करते न प्रेम को तुम जान ही सके हो,
प्रेम तुम्हे करता है प्रेम *तुम्हारे बारे में* सब जानता है
वो चलता रहता है *ठीक तुम्हारे पीछे*
प्रेम कभी *अंतिम* नहीं हो सकता
वो चलता रहता है हमेशा तुम्हारे साथ उस *चलते फिरते प्रेत* की तरह जो चलता रहता है अनवरत
प्रेम को तुम नज़रंदाज़ भी नहीं कर सकते हो
वो *शर्ट के तीसरे बटन* की तरह होता है जो हल्का सा भी खुला हो तो कुछ कमी सी लगती है.
प्रेम को जानना हो तो तुम्हे सीखना होगा *प्रेम कबूतर* से
और तब तुम्हे मालूम पड़ेगा प्रेम बस करने का नाम नहीं है
और फिर समझ आयेगा किसी के साथ चलते हुए प्रेम की खोज में कि *बहुत दूर कितना दूर होता है* .!!
मानव कौल सर की
पुस्तकों के अंश.!!❣️
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