सुना है जब एक बार दिल टूटता है, तो उसका जुड़ पाना उतना ही मुश्किल होता है जितना कि सागर की लहरें रोकना। शायद इसी बात का एहसास हो रहा है अब मुझे। मुझे यूँ तो कभी लगा नहीं था, कि जीवन में दिल टूटने जैसा कुछ अनुभव करूँगा। बल्कि मुझे हमेशा से ही ये बातें बचकानी लगती थीं। शायद यहीं गलती कर बैठा!
प्यार का मतलब समझने की कोशिश की थी। मतलब तो दूर, प्यार का अस्तित्व ही नहीं बचा। किसीने सच कहा है, कि गर प्यार में तर्क ढूँढा जाये, तो वो प्यार, प्यार नहीं रहता। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हो रहा था। देखो, झेल रहा हूँ ना। मैंने सुबह उठकर उसे याद करने की मानो जैसे आदत डाल रखी है; बहुत गलत आदत है।
आज जब पुरज़ोर कोशिश कर दिल को जोड़ लेने की सोचता हूँ, कोई अपना सा आशना नहीं मिल पाता। अब लगता नहीं, कि इस टूटे दिल को बाँध कर रख पाने की हिम्मत है किसी में। असल बात तो ये है, कि मैं नहीं चाहता अब जो भी हो, उसमे मुझे "उसकी" कोई भी झलक दिखे जिसे मैं भुला चुका हूँ। इसलिए बार-बार, हर बार हारता हूँ।
लेकिन, चाहता मैं भी नहीं कि किसीको मुझसे हमदर्दी हो। मैं भी जीवन, निरस, अकेला, अधूरेपन में नहीं गुज़ारना चाहता। मेरे भी कुछ अरमान हैं, जो अंदर दब कर खुद में उलझे से हैं, बस इतनी सी उम्मीद लगाए कि कहीं कोई आये और इन्हें वो रौशनी दे, जो किसी भी अँधेरे से लड़ने में मेरे साथ हो।
- सौरभ