कर के खूब अठकलियां
सताना तो चाहा बहुत था,
तू कितना जरूरी है
बताना तो चाहा बहुत था,
पतझड़ में गिरे, वसंत में खिले
मेरे मौसम को हर रंग तुझसे मिले
कभी तू रात सी शांत,
कभी भोर सी चहके।
तुझसे लिपट कर तेरे कानों में,
फुसफुसाना तो चाहा बहुत था,
तू कितना जरूरी है
बताना तो चाहा बहुत था।।
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पढ़ा मैने वो कलाम भी था,
मालूम मुझे अपना अंजाम भी था ।
वो तो कुछ उसने और कुछ वक्त ने हौसला बढ़ाया,
वरना किस्सा मेरा तमाम ही था ।।-
आओ कभी, बैठो कभी, बातें मुलाकातें करो।
सुबह शुरु बातों से और उसी से शाम रातें करो।।
तभी तो समझोगे, तभी तो मानोगे, इश्क़-ए-गहराई पहचानोगे तुम।
या तो हर्फ़ इश्क़ मर्ज़ होगा, या मर्हम-ए-इश्क़् जानोगे तुम।।-
धड़कने बता देती हैं के तेरा शहर करीब है,
वरना सफ़र में तो कई शहर गुजरे हैं।।-
कल फिर मिलूंगी तेरा ये कहना,
बस इतना ही काफी है आज की लंबी रात के लिए।-
वो कहते हैं कि उन्हेंं इश्क के बारे मे कुछ नही पता,
हमने कहा ट्यूशन लेलो, मुझे इश्क के सिवा कुछ नही पता।।-
सारी निशानियां तेरी, है खजाने मेरे,
एक घड़ी, एक कलम, सूखा गुलाब,
एक कमीज, ग्रीटिंग कार्ड्स और कुछ ख़्वाब।।
कोई नहीं चूकता तेरी याद दिलाने मे मुझे,
लहराते फूल, गर्मी की शाम, ठंडी हवा,
हल्की बारिश, उड़ते पक्षी और सर्दी की सुबह।।
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वाक़िफ नही हो अभी मुझसे, तुम मेरे सब्र की इंतेहा देखोगे।
जगह वही होगी जहां छोड़ कर गए थे, पर मेरी आंखों से गुजरता जहां देखोगे।।-
अगर देख लेते वो पीछे मुड़कर अपने पैरों के निशा(न),
कुछ दूर ही सही मेरे साथ तो चले थे ।।-
तूने वो पुरानी किताब खोली होगी तो, मेरा नाम भी आया होगा,
लिखकर दिल की बातें जो मिटाईं थीं, उसका निशान भी आया होगा।
रास्ते बदल गये तो क्या,
तेरे कुछ जवाबों में एक, मेरा सवाल भी आया होगा।।-