लिफाफा:-एक बंद सौगात
आंसू भेज रहा हूं लिफाफे में भर कर,
शायद इस दर्द का वज़न तुम समझ सको।
हर कतरे में हैं हमारी अधूरी कहानी,
शायद इसके हर कतरे में तुम उतर सको।
ख़ामोशी की मुहर लगी है इस दिल पर,
उम्मीद है, तुम उसकी छाप पढ़ सको।
लिख नहीं सका हूं जो इस कागज़ पर,
शायद तुम उसके अर्थ समझ सको।
इल्तज़ा है बस आप से इतनी,
खोलना ज़रा इसे संभलकर,
कुछ टूटे ख्वाबों के टुकड़े हैं अंदर।
जो बह न सके, वो समंदर भी है इसके अंदर,
कुछ अधूरे ख्वाबों का मंजर भी है इसके अंदर।
छू लोगे तो शायद रो पड़ोगे तुम भी,
क्योंकि सिर्फ चिठ्ठी नहीं ,
एक रिश्ता दफ़न है इस लिफाफे के अंदर।-
कविताओं में अक्सर उन्हें रोते देखा जाता हैं।
जो मोहब्बत का मैदान हार चुके होते हैं।-
कभी-कभी चंद सिक्कों का खो जाना,
पूरी रियासत लुट जाने से अधिक पीड़ादायक होता है।-
हम वो हैं जो रियासतें लुटा कर बैठे हैं,
अब चंद सिक्कों के खोने का क्या ही ग़म॥-
भीतर का शोर से — एक मौन युद्ध
निकल नहीं पा रहा हूँ उस ठौर से,
शायद,
परेशान हूँ मैं,भीतर के शोर से।
फँस के रह गया हूँ दुखों के मोड़ पे,
कारण,
परेशान हूँ मैं,भीतर के शोर से।
आँसू आ जाते हैं दिन, दोपहर और भोर में,
कारण,
परेशान हूँ मैं,भीतर के शोर से।
आईना में देखा जब गौर से,
तो आईने ने भी कहा —
परेशान है तू भीतर के शोर से।
मुस्कराया नहीं हूँ शायद मैं एक दौर से,
हाँ,
मैं परेशान हूँ,
भीतर के शोर से।
ना जाने कब मुक्ति मिलेगी,
इन आँखों को इस भावाभिभोर से,
ना जाने कब बंदिशें लगेंगी, इस भीतर के शोर पे।-
मेरे लफ़्ज़, मेरा जीवन
शुक्रिया इन बेजान लफ़्ज़ों का,
जिनकी वजह से आज मुझमें जान है।
जब-जब बिखरी साँसें मेरी,
तब-तब इन्होंने जीवन का दान दिया।
ख़ामोश हुई जब-जब रातें मेरी,
तब-तब इन्होंने मधुर संगीत का तान दिया।
टूटकर बिखरा जब भी ज़मीन पर,
इन्होंने ही हर बार मुझे नया आसमान दिया।
जब भी रोया, इनकी आग़ोश में रोया,
क्योंकि इन्होंने ही मुझे मुस्कान दिया।
माना ये लफ़्ज़ बेजान है,
मगर बगैर इनके मेरा जीवन निष्प्राण है।-
तेरी आँखें जैसे कोई कश्ती हैं,
या फिर कुछ यूं कहूं तो,
ख्वाबों की कोई हसीन बस्ती है।
तेरे बाल जैसे लहराती शाम कोई,
या फिर कुछ यूं कहूं तो,
बर्फ पर ढलती मिठा जाम कोई।
तेरी मुस्कान में कुछ खास हैं।
जिसे देख ठहर जाती मेरी सांस हैं।
देख कर अंदाज़ तुम्हारा प्यारा सा,
ये जग लगे मुझे न्यारा सा।
सादगी भरी तेरी चाल,
करती मुझे बिल्कुल बेहाल।
सिर्फ एक शब्द में लिखुं अगर तुम्हें तो ,
लिखता हूं सिर्फ बबाल।
लिखता हूं सिर्फ बबाल॥-
“सब ठीक है„
अंदर से बिखरे हैं, बाहर से मुस्कुराते हैं।
फिर भी, "सब ठीक है" कह कर रह जाते हैं।
आंखों में नमी है,
जिसे बेतुकी सी हंसी से छुपाते हैं।
फिर भी, "सब ठीक है" कह कर रह जाते हैं।
दिल के दर्द को दिल में ही दफनाते हैं।
फिर भी, "सब ठीक है" कह कर रह जाते हैं।
कभी किस्मत, कभी लोगों को हम दोष दिये जाते हैं,
फिर भी, "सब ठीक है" कह कर रह जाते हैं।
खुद को हर रोज़ थोड़ा-थोड़ा गंवाते हैं।
फिर भी, "सब ठीक है" कह कर रह जाते हैं।
अब तो आदत हो गई है दर्द छुपाने की,
तभी तो, "सब ठीक है", ये झूठ आसानी से कह पाते हैं।
ये झूठ आसानी से कह पाते हैं॥-
“सब ठीक है„
अंदर से बिखरे हैं, बाहर से मुस्कुराते हैं।
फिर भी, "सब ठीक है" कह कर रह जाते हैं।
आंखों में नमी है,
जिसे बेतुकी सी हंसी से छुपाते हैं।
फिर भी, "सब ठीक है" कह कर रह जाते हैं।
दिल के दर्द को दिल में ही दफनाते हैं।
फिर भी, "सब ठीक है" कह कर रह जाते हैं।
कभी किस्मत, कभी लोगों को हम दोष दिये जाते हैं,
फिर भी, "सब ठीक है" कह कर रह जाते हैं।
खुद को हर रोज़ थोड़ा-थोड़ा गंवाते हैं।
फिर भी, "सब ठीक है" कह कर रह जाते हैं।
अब तो आदत हो गई है दर्द छुपाने की,
तभी तो, "सब ठीक है", ये झूठ आसानी से कह पाते हैं।
ये झूठ आसानी से कह पाते हैं॥-