कितनी ही पीढ़ियां बीत गई पिताओं को अपने प्रेम का प्रदर्शन करना नहीं आया अपने बेटे के प्रति। कभी सर पर हाथ फैर दें कभी पीठ पर धोल लगा लें या कभी बहुत ही दिल करे तो गले से लगा लें, तारीफ़ करेगें लेकिन उसके लिए दूसरों की ओर तलाशते हैं, सामने सख़्त बने रहते है क्योंकि उनके बाप ने भी उनको यहीं सिखाया था।