ले के तालीम,आप मौसम से,
एक पल में ही,बदल जाते हो!-
उस की यादों ने
उगा रक्खे हैं सूरज इतने,
शाम का वक़्त भी
आए तो सहर लगता है।
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बन के 'शहजादा' दिल की हुकुमत में रहा,
"माँ" तेरी गोद में जब तक रहा जन्नत मे रहा..!-
आया गुनाह ए इश्क़ में,
तब से मेरा भी नाम,
जब से नज़र किसी की,
दिल पे वार कर गई!
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मेरे मन मे मृत प्रेम की एक लौ है, जो हर वक्त जलते रहती है और मैं उस लौ में जल कर हर रोज़ ख़ाक होता हूँ ।
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मैं परिपक्व व्यक्ति नही हूँ, इसीलिए मैं परिपक्व बातें भी नही करता। मैं एक नासमझ, जोशीला, उदंड, मौसमी एवंम रोड छाप मजनू हूँ । मेरे हादसे मेरे उम्र से काफी बड़े हैं। मैं अपने हादसे को लिखते-लिखते इसे अपनी दुनिया बना लिया और जो वास्तविक मैं था उसे कहीं दूर छोड़ काफी दूर बढ़ गया।
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अब हार, जीत जैसे कोई महत्व ही नहीं रखते मेरे जीवन में, कुछ भी को पाने की चाह जैसे समाप्त हो गई है, जो मिल जाए सहज स्वीकार है, न मिले तो दुख नहीं! ये भी ठीक, वो भी सही...!!!
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कि उनके बेपरवाह इश्क़ को
हमने संजीदगी से निभाया
उनकी उड़ती निगाह में
खुद के लिए नजाकत ढूंढी
उनकी ख़ामोशी में खुद ही
इजहार ए मोहब्बत तलाशी
हर लिहाज से ,बेवजह ही
उनसे इश्क़ की वजह ढूंढी
शायद ये इश्क़ है इसलिए ही
उनके लापरवाह" कैसे हो तुम" में
खुद के लिए उसकी परवाह ढूंढी
और इसलिए ही पूरी शिद्दत से
"अच्छे हैं हम"कहने को लफ्ज़ ढूंढे..-