"गुस्ताखी"
पहेली बार उन्हें देखा था हमारी "आंखों " ने,
पर पसंद किया था "दिल" ने
सोचा दिमाग ने कि उनसे इज़हार करे,
पर इज़हार किया "ज़ुबान" ने।
जब इज़हार किया"ज़ुबान" ने तो उन्होंने बड़े प्यार से इंकार किया,
जब इंकार किया उन्होंने हमने बहुत सोचा अपने "दिमाग" से कि आखिर क्या वजह है इसकी?
बहुत दर्द हुआ "दिल"को यह जान के कि शायद हम में ही कोई कमी थी।
जब दर्द हुआ दिल को तो एक शब्द ना आया "ज़ुबान" पर।
बस आंसू आए "आंखों" से क्योंकि यह गुस्ताखी उसी ने कि थी
-