जीवन में भागते थे उनकी तलाश को,
फिर भी न थाम पाये उनके हाथ को।
प्यास बुझाने पहुंचे तब जलाशय को,
देखा प्रतिबिंब में अमूर्त पाषाण को।
लगा अनवरत क्या शरद क्या तपन,
हुआ शंखनाद चला युद्ध वर्षो सतत।
ज्यों श्रम ने बनाया पाषाण को मूरत,
त्यों स्वयं आईं वो पुजारन वो औरत।।-
I don't want to talk more.
तेरे बदन को छूकर निकली वो बूंदे मोतियों से कम न थे,
न जाने क्यूं थम गई बारिश जिसमें भीगोया था मन तक,
न ही वो आम बारिश थी न उसमें भीगती वो मात्र तन तक,
फिर एक दिन हम निहारेंगे उन्हें, न होंगी वो अजनबी तब,
भीगेंगे संग उनके हम,बनेंगे जीवन-संगिनी सात जन्म तक।-
मूर्ति बना के पत्थर की,
तुम नंदी बाबा कहते हो,
पाषाण की प्रतिमा को,
तुम माता-माता कहते हो।
स्वान जो हो मंदिर में,
तो भैरव बाबा कहते हो,
जो दिख जाये सड़कों पर,
तो पत्थर की वर्षा करते हो।
जो सर्प हो यदि पत्थर का,
तो उसकी पूजा करते हो,
एक टुकड़े खाल की खातिर,
एक जीवित के प्राण हरते हो।-
If you share your lives
There be often a scar,
Both one on one,
With a shadowy third,
If shared together,
both get blurr,
and if kept inside,
makes dead creature,
Don't keep them near,
Near your core,
Can make you sick,
Sick as cruel one.-