हाथों में हाथ लिए बैठे हो
आज भी इन तस्वीरों में तुम !!
जिंदगी में तो आए...
पर आए क्यों ना इन लकीरों में तुम ??-
But still remember how to read."
संभाल कर रखा था उसको अपना समझकर बाहों में
जैसे एक बच्चे को संभाला जाता है !!
भूल गई थी इस बात को शायद...
के बच्चों का मन तो चंचल होता है
वो तो अक्सर ललचा जाता है !!
नया खिलोना देखते ही
वो किसी ओर की बाहों में आ जाता है !!-
आख़िर में कांटों पर ही डाला
उसने सारा दोष !!
जो रह गया था...
गुलाब की कमियाँ निकालने में
हर बार खामोश !!-
तुम्हारे इस खेल को
अपनी किस्मत का लिखा समझकर...
दिल पर जो बोझ था मेरे
मैंने उसको अब साफ़ किया है!!
तुम्हारी चालाकियों को नहीं
मैंने सिर्फ तुम्हारी गलतियों को माफ़ किया है!!-
हैरान भी क्यों हुए उनके फैसले पर...
उन्होंने कहा ही कब था ??
"के हम तुम्हें धोखा नहीं देंगे..."-
नमक तुम हाथ में लेकर
"सितमगर" तुम सोचते क्या हो...
हज़ारों "ज़ख्म" हैं इस दिल पर
जहां चाहो छीड़क डालो...-
शुक्र करो...
कि जो दर्द हम सहते हैं,
वो लिखते नहीं!!
वरना कागज़ों पर लफ़्ज़ों के
जनाज़े उठते!!-
करवटें बदलने में ही रात सारी गुज़र जाती है...
कुछ बातों को सोचने में ही अक्सर सुबह हो जाती है!!-
अश्क थे हज़ारों
हिरासत में मेरी आंखों की...
ज़मानत मिल गई सबको
बस ज़रा सा कुछ याद आते ही...-
ना नफ़रत है तुमसे
ना ही मोहब्ब्त अब रही...
ना पाने की ख़्वाहिश अब तुमको
ना ही खोने की घबराहट अब रही...-