Sonam Singh( Prerana)  
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I have a list of hobbies and writing is one of them 卐
Joined 14 February 2019


I have a list of hobbies and writing is one of them 卐
Joined 14 February 2019
11 AUG 2019 AT 8:08

अगर,मगर और काश में नहीं मैं
अभी किसी अवकाश में नहीं मैं
हर सफ़र में मुझे नये चौराहे मिलते हैं
अभी किसी मंजिल की,,,
तलाश में नहीं मैं। सोनम/प्रेरणा

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26 AUG 2021 AT 3:31

03:30

बस तारीफों के पुलिंदे नहीं बाँध पाती मैं,,,,,,
इसीलिये दो-चार लफ्ज़ों में ही निपटा देती हूँ सबको
।।मेरे चारोंओर ये जो जाने-अनजाने लोग हैं
उन्हें जाने-अनजाने ही रहने देते हैं

जानने और पहचानने में बहुत अंतर है

पहचान हो जायेगी उनसे तो कई नकाब हटेंगें
और बहुत बुरा हो होगा इस दौर में नकाब का उतरना ।।।

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13 FEB 2021 AT 22:01

कई रिश्तों में जोड़कर हमें
बाँट देती है कई किश्तों में

पर खुद कभी किश्तों में नहीं मिलती
ये "जिन्दगी"

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13 FEB 2021 AT 21:49

मध्यवर्गीय परिवार में जन्म लेना
लड़की बनकर,
सिर्फ लड़की नहीं ,,,,,
महत्वाकांक्षी लड़की बनकर,,,,,,
आसान कहाँ होता है,,,आसान नहीं होता है
सपने बुनना,पंख लगाना,उड़ना नीले वितान में
हर असफलता पर ताने सुनना,अपने ही परिवार के,,
तुम ही नहीं ,,बहुत हैं तुम जैसे जो करते बाहर काम हैं
पा रहे सरकारी नौकरी,देखो कितने महान हैं।।
पर ,,,
जब भी सच बोले अगर तो बात-बात पर श्राप है
कहते 'ख्वाब पाल रखी है इसने देखती नहीं औकात है।।
वह लड़की, कहाँ जीती है अपनी मर्जी का जीवन
माँ बाप भाई बहन के ताने सुनती है वह आजीवन
देखकर ऐसी व्यथा सोचती हूँ मैं,,,,

कई मौत मरने से बेहतर है एक बार मर जाना
सपनों के मरने से बेहतर है गर्भ में ही सो जाना



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27 DEC 2020 AT 14:08

which working and repairing us continue without expiry date.

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27 DEC 2020 AT 13:04

I also want to fly
High and high

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26 DEC 2020 AT 23:54

अगर,मगर और काश में नहीं मैं
अभी किसी अवकाश में नहीं मैं
हर सफ़र में मुझे नये चौराहे मिलते हैं
अभी किसी मंजिल की,,,
तलाश में नहीं मैं।

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19 DEC 2020 AT 19:41

which give us a light of hope when we surround by darkness.

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19 DEC 2020 AT 19:30

कुछ कहना तो है,पर चुप रहकर
बिन लब खोले, बिन कुछ बोले
बोलती और सुनती आँखों से,
क्योंकि
होठों पर बात नहीं आती।।

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19 DEC 2020 AT 18:32

खुद से मिला करो हर रोज ज़रा- ज़रा
किया करो गुफ्तगू खुद से हर रोज ज़रा-ज़रा

तुम्हारी तारीफों के पुलिंदे कोई बाँधने नहीं आएगा
किया करो तारीफें खुद की, हर रोज ज़रा-ज़रा

इस चाटुकारों की बस्ती में हम और अहम का बोलबाला है
खामोशी से देखती रहो ,हर नज़ारा ज़रा-ज़रा ।






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