हम कुछ औऱ सोचते हैं
ज़िन्दगी कुछ और कर जाती है,
पूछना था मुक़द्दर से
आख़िर ये ज़िन्दगी इतनी तकलीफ़े किधर से लाती है!
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अधूरी सी एक मुक़म्मल कहानी है मेरी,
क़भी दरिया तो कभी तूफां सी ज़िन्दगानी है मेरी,
इस दुनिया के मायाजाल में यूँ तो मैं उलझने से रहा,
कमबख्त सबकी करतूतों पर परख निगरानी है मेरी,
औऱ ग़ैरों की दुआएं ही रही हैं असरदार मेरे लिये हमेशा,
क्योंकि खुदके रिश्तों से दूर की मेहमानी है मेरी,
इन अथाह उदासियों के ज़ख्म अब बेसाख्ता पायाब हो चले हैं,
औऱ मिरे अपनों की खुशियाँ तो नफ़्स बेगानी हैं मेरी,
ख़्वाहिशों को देखने की इतनी हसरत तो नहीं थी,
पर ख़्वाबों को मुक़म्मल करना इक हैरत निशानी है मेरी,
जो लकीरें नुमा'ईश करती है वक़्त बे वक़्त ख़ामख़ा,
वो भी नाचीज़ , नाशाद से नसीब के दीवानी है मेरी,
दोस्ती भले तेरी असरदार न हुई हो कभी "राही",
पर ऐसी दोस्ती के धोखों पर तो कितने मर्तबा क़ुरबानी है मेरी!
-Sonam Sharma
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हर ख़्वाब अब तक मुक़म्मल हुआ है क्या,
तुम्हें भी अधूरे ख़्वाबों का क़भी मलाल हुआ है क्या?
भले तुमने हर मर्तबा की हों जी तोड़ कोशिशें,
मग़र क़भी नाकामयाबी का ज़ख्म शादाब हुआ है क्या?
बहुत क़रीब से देखा होगा तुमने सपनों को टूटते हुए,
मग़र बिखर कर भी कुछ ख़ास फ़र्क़ क़भी पड़ा है क्या?
या फ़िर हारते हारते बस हार की ही लत लग गयी हो,
मग़र तुम जीत सकते थे ख़ुदसे कभी ये सवाल किया है क्या?
क़भी टूटते तारों से ख़्वाब पूरे होने की मुराद मांगी होगी,
औऱ फ़िर उन ख़्वाबों के पूरा न होने पर अज़ाब हुआ है क्या?
या तुम ख़ामख़ा सोच लेती हो ये तरह तरह की बातें "राही"
हर व्यक्ति की मंज़िल का रास्ता यूँ आसान हुआ है क्या?
-Sharmaji_writes
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बिखरी हुई ज़िन्दगी से ख़ुशियों को समेट पाना हर किसी के बस की बात नहीं,
दुर्गम परिस्थितियों से गुज़र जाना हर किसी के बस की बात नहीं,
तुम कहते हो कैसे ख़ुश रह लेते हो तुम इतना परेशान होकर भी,
तो सुनो..!
हर वक़्त यूँ मुस्कुराते रहना भी हर किसी के बस की बात नहीं!-
मैंने नहीं देखा ख़ुदको अपनी उम्र से पहले
कभी इतना बड़ा होते हुए..
उन स्याह रातों सा ख़ामोश..
कुछ अंगारों सा सुलगते हुए,
ख़ुद को इतना सब्र का इम्तेहान देते हुए..
और उन अनगिनत तक़लीफ़ों से हर क्षण गुजरते हुए,
मन में आ रहे एकाएक बवंडरों से..
उन पीड़ाओं से कभी जूझते हुए,
नेत्र नम और मुस्कुराहट मिथ्या चेहरे पर..
और खुदके अश्रुओं को खुद ही पोंछते हुए..!
-Sharmaji_writes
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ख़्वाब रूबरू हो जायें हक़ीकत से ऐसा ज़रूरी तो नहीं,
मुसाफ़िर को मिल जाये मंज़िल क़िस्मत से ऐसा ज़रूरी तो नहीं,
ज़िन्दगी एक मक़सद है तुम्हारे प्रयासों मात्र का,
तुम बेसब्र ही पा लो सब ख़ुदा की रहमत से ऐसा ज़रूरी तो नहीं!-
लफ़्ज़ों में ख़ामोशी आती गयी,
खुशियाँ सारी तबाह होती गयी,
बदला कुछ नहीं गुज़रते वक़्त के साथ,
बस कुछ चीजों की आदत होती गयी!-
कि अब मन नहीं करता,
ज़रा सा भी नहीं करता ,
ये कैसा ज़ुल्म-ओ-सितम है ख़ुदा इस ज़िन्दगी का ,
कि अब किसी से कुछ कहने तक का भी ये दिल नहीं करता!-
कई बार ऐसा होता है..
कि कहना तो हम
बहुत कुछ चाहते हैं ,
लेकिन सिर्फ इसलिए नहीं कह पाते ,
कि सुनेगा कौन?
सुनने वाले यदि मिल भी गए..
तो समझेगा कौन?
तब हम तलाशते हैं..
खुदमें इक सुकून , इक आस , इक खुशी
और खुदमें ही ख़ुदको...
सुनने और समझने वाला इंसान भी !-
"थक हारकर जब तलाशा किसीको कुछ कहने के लिये,
तो मुझे मुझसे बेहतर सुनने वाला कोई न मिला "-