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खुद की क्या ही तारीफ करूँ जनाब,
हम तो शुरू से, शामिल ही मध्यम वर्गीय हुए,
कद-काठी, रूप -रंग सबमे बस बेढंग हुए,
हम तो खुद ही खुद से नाराज हुए,
लोगों की क्या, लोगों के तीखे बाणों को भी झेल गये,
खुद की क्या ही तारीफ करूँ जनाब,
हम तो शुरू से, शामिल ही मध्यम वर्गीय हुए |
एक तो काले धब्बों ने चेहरों को कितना चमकाया,
फिर खुदा की मेहरबानी से एक्सीडेंट ने चेहरे पर क्या खूब ही ग्रहण लगाया है,
जिसने भी देखा,बस,बातें चेहरे की ही की,
मेरे अंदर की ना खूबी दिखती,बस चेहरे की ही चर्चा थी,
पहले तो यूँ लगा क्यों सुनने को जिन्दा रखा हैं,
लोगो को दिल ही क्यों ना दिखा मेरा, बस चेहरा ही पूरा मुद्दा हैं,
फिर सोचा, शायद,मैंने ही,ज्यादा सोचा हैं |
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एक स्त्री के लिए उसका चरित्र,
उसे स्वर्णआभूषणों से भी अधिक प्रिय होना चाहिए |
एक "सुन्दर चरित्र" स्त्री पर,
अपार स्वर्ण आभूषणों से भी अधिक सुशोभित होता हैं |-
जैसे गुम हो जाते हैं नीले आसमान में बादल,
कुछ उन जैसे ही खो गये अपने |
खो जाती हैं आशाएं,उम्मीदें,
लिबास ओढ़े आती हैं जब मुश्किलें |
दफ़न हो गयी कहीं मन की सारी ख़्वाहिशे,
अब तो कुछ पाने की चाहत ही ना रही |
यूँ लगता हैं आसमान का हर परिंदा नासाज़ हैं,
मैं खुद का हाल सुनाऊँ तो ये भी कोई बात हैं |
अजीब सी कशमकश हैं मौला मेरे,
सूझी आँखे और डर बेसुमार हैं,
डर हैं उन्ही बेतुकी बातों के फिर से दोहराये जाने का,
डर हैं खुद को ना समझा पाने का,
डर हैं अपनो को खो देने का,
और डर हैं खुद को खो देने का |
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लोग कहते हैं इतनी मेहनत से इतनी महंगी पढ़ाई की हैं,
दहेज़ तो लेंगे ही हम |
तो मुन्ना पढ़ाई भी तो तुमने अपने लिए की थी,
और ये जो दहेज़ में तुम टीवी,कूलर, बेड,सोफा, बर्तन गाड़ी, और कैश मांगते होना,
तो पढ़ाई में खर्चा करने की जगह सामान ही खरीद लेते और किसी गरीब की बेटी बियाह लेते,
इतनी मेहनत भी ना करनी पडती और कम खर्चे में सामान भी आ जाता |
या फिर इतनी महंगी पढ़ाई करके भी खुद से सामान लेने की औकात नहीं हैं या फिर लड़की के बाप से दहेज़ मांगते,नहीं दहेज़ की भीख मांगते शर्म नहीं आती,
या फिर तुम्हारी कीमत ही दहेज़ के पैसों बराबर हैं |
अब खुद सोच लो |
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बस कुछ घंटे पहले की बात थी हम अपनों के साथ खुश थे,गंगा के घाट पर चहकते हुए जिंदगी की उस जगमगाती शाम का लुफ्त ले रहें थे,जिंदगी की हकीकतों से परे,अगले पल की गहरी काली ख़ामोशी से अनजान,क्या पता था रास्तों में मौत आ मिलेगी,एक पल को क्या हुआ कुछ पता ना चला,होश आया तो लहूलुहान लोगो की भीड़ से घिरे,कोई कहता रिक्शा रोको,भईया सिटी हॉस्पिटल चलना हैं,इमरजेंसी हैं एक्सीडेंट केश हैं,जल्दी करो खून ज्यादा बह रहा हैं,दोनों को हॉस्पिटल ले जाना हैं |इतनी आवाजों, लोगो के बीच,अपनी तकलीफ से परे कुछ समझ आ रहा था,तो बस,"वो"|
भैया हम दोनों को एक साथ हॉस्पिटल ले चलो बहुत चोट लगी हैं इनको,
"आप ठीक हो ना, कितना खून बह रहा हैं..,"रात भर आँखो के सामने रखना था उसको,मन में उठे बुरे ख्यालों से पल्स कभी ऊपर होती कभी नीचे,
ICU में एक-एक सेकंड हो रही हलचल,
सब देख रही थी,कभी इधर-उधर देखती,फिर जी भर उसको देखने की इच्छा होती,दिल घबरा रहा था सुबह होगी या नहीं,ये सोच दिल सहमा जा रहा था,
कभी लगता माँ को देख लूँ कभी लगता पापा,
कभी बहन कभी बाकि सारी फैमिली,
वहा से गुजरता हर सफ़ेद कोट वाला शख्स,
किसी भगवान से कम ना था,और ईश्वर से प्रार्थना करती की सब ठीक करदे, रात बीती तो प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट किया गया,डॉ. ने कहाँ सब ठीक है जल्दी ठीक हो जायेंगे,तो दिल को सुकून आया की अब,
वो ठीक हैं,और... मैं भी|
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जहाँ हो ना भरोसा रिश्तों में,
वहाँ शक ले डूबेगा,
जहाँ पड़े दरारें अपनों में,
वहां शक ले डूबेगा,
जहाँ होने लगे खटास मन के भावों में,
वहाँ शक ले डूबेगा,
जहाँ प्रेम पर ना हो विश्वास,
वहाँ शक ले डूबेगा,
जहाँ शक को मिले प्रमाण,
निश्चय ही वहाँ शक ले डूबेगा |-
कही खुशियों की आतिशबाजी,
कही गम का माहौल हैं,
ये काल चक्र हैं साहब ,
कुछ स्थिर नहीं,
यहां हर किसी का वक़्त आता हैं |-
एक औरत धन नहीं अपितु प्रेम चाहती हैं,
एक औरत उपहार नहीं सम्मान चाहती हैं,
एक औरत वक़्त चाहती हैं,
कुरीतियों से आज़ादी, स्वच्छन्दता चाहती हैं,
मोह नहीं लालसा नहीं धन सम्पति का,
एक औरत अपनो का सहयोग, साथ चाहती हैं,
एक औरत खुलकर जीने की आज़ादी
अपने अधिकार चाहती हैं,
भय खौफ रहित गली कूचे,
दिन और राते चाहती हैं|
एक और बस खुलकर जीना चाहती हैं |-