बस कुछ घंटे पहले की बात थी हम अपनों के साथ खुश थे,गंगा के घाट पर चहकते हुए जिंदगी की उस जगमगाती शाम का लुफ्त ले रहें थे,जिंदगी की हकीकतों से परे,अगले पल की गहरी काली ख़ामोशी से अनजान,क्या पता था रास्तों में मौत आ मिलेगी,एक पल को क्या हुआ कुछ पता ना चला,होश आया तो लहूलुहान लोगो की भीड़ से घिरे,कोई कहता रिक्शा रोको,भईया सिटी हॉस्पिटल चलना हैं,इमरजेंसी हैं एक्सीडेंट केश हैं,जल्दी करो खून ज्यादा बह रहा हैं,दोनों को हॉस्पिटल ले जाना हैं |इतनी आवाजों, लोगो के बीच,अपनी तकलीफ से परे कुछ समझ आ रहा था,तो बस,"वो"|
भैया हम दोनों को एक साथ हॉस्पिटल ले चलो बहुत चोट लगी हैं इनको,
"आप ठीक हो ना, कितना खून बह रहा हैं..,"रात भर आँखो के सामने रखना था उसको,मन में उठे बुरे ख्यालों से पल्स कभी ऊपर होती कभी नीचे,
ICU में एक-एक सेकंड हो रही हलचल,
सब देख रही थी,कभी इधर-उधर देखती,फिर जी भर उसको देखने की इच्छा होती,दिल घबरा रहा था सुबह होगी या नहीं,ये सोच दिल सहमा जा रहा था,
कभी लगता माँ को देख लूँ कभी लगता पापा,
कभी बहन कभी बाकि सारी फैमिली,
वहा से गुजरता हर सफ़ेद कोट वाला शख्स,
किसी भगवान से कम ना था,और ईश्वर से प्रार्थना करती की सब ठीक करदे, रात बीती तो प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट किया गया,डॉ. ने कहाँ सब ठीक है जल्दी ठीक हो जायेंगे,तो दिल को सुकून आया की अब,
वो ठीक हैं,और... मैं भी|
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