वो इतराती घूमती कहती, मिला सपनों का दूल्हा है
उसी दूल्हे से रोज़ पिटती है, उसे अपनों ने भूला है
उसकी मार खाती, तिलमिलाती चीखों को लिखा मैंने!💔
वो कहता था, भरोसा कर ये ख़ुदा का बंदा है,
भरोसे तोड़ के, कर रहा जो आबरू का धंधा है
उसकी गंदी काली नीच हंसी को भी लिखा मैंने! 💔
वो कहतीं थीं जो कॉलेज में, करेंगे साथ में शादी,
वो ऑफिस से करतीं है तदबीर कॉफी पे मिलने की
उन पक्की सहेलियों की ऊँची उड़ानों को लिखा मैंने!💞
बड़ी हिम्मत जुटायी है, कलम को ताक़त देने में
वो चाहे प्यार हो, शिकवा हो या हो रोष दिल का
वो सारी सोचों को पन्नों पे लफ़्ज़ों में है लिखा मैंने! 💞💔
स्वरचित
सोनम बी सलूजा
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जो कहते हैं मुझे हर दफ़ा कि ऐसा क्यूँ है लिखा मैंने
वो क्या जाने मेरे दिल की आह,
जो देखा, जाना, समझा, सबकुछ है लिखा मैंने!
वो लड़के के जन्म पे, खूब नाचा कूचे कूचे में
वो भूखा, बेघर फिरता उसी कूचे कूचे में
उसके पेट और आँखों की भूख को है लिखा मैंने!💔
वो दोनों ने जो मिल के देखे थे रंगीं कई सपने,
वो जो आज इक दूजे को देख भी नहीं सकते
उनके मिल न पाने की ख़लिश को है लिखा मैंने! 💔
वो बातें ऐंठ कर करना, मगर देखना प्यार से
सुनाते हैं जो बूढ़े हो अपनी कहानियाँ प्यार से
वही धुंधली मीठी यादों को पिरो के है लिखा मैंने! 💞
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मात पिता की सीख!
नहीं मोल उस जीत का, जो हो छल के साथ|
कहते हैं मेरे पिता, इससे अच्छी मात||
जाओ तुम रण में उतर, पूरा करो प्रयास|
त्यागो चाहे प्राण तुम, रखो जीत की आस||
ऐसी बात न कीजिए, जो मन को चुभ जाय|
बोलें मीठा, माँ कहे, मन मिसरी घुल जाय||
पीठ दिखा मत भागना, सीने पर लो वार|
तब भी मेरी ही सुता, अगर गई भी हार||
ग़लत कोई जो कर रहा, तुम न बदलो राह|
सत्यवान को, माँ कहे, मिल जाते हैं शाह||
Sonam B Saluja
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अपनों से ही सर्वदा, दुख मिलता अधिकाय।
अंतस सुख पाना अगर, होते गुरू सहाय।।
Sonam B Saluja-
हँसी-ठिठोली का बना, सखियों का मन आज|
शाम चाय पर सब मिलीं, भूलीं सारे काज||
Sonam B Saluja-
वो भी हैं क्या खूब जो, करते बस अपमान|
कैसे पाएंगे भला, औरों से सम्मान||
Sonam B Saluja
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कहो ज़ोर से 'ख़ास हूँ', और बड़ी झक्कास |
सुनो झूम संगीत तुम, करो ग़मी खल्लास ||
Sonam B Saluja-
काश न मिलता ये मुझे, मिल जाता वो काश
सत्य वही जो है मिला, क्यूँ फिर करें तलाश?
Sonam B Saluja-
मौन
कहीं मौन अपराध है, कहीं वीरता मौन
गूढ़ मौन के राज़ हैं, मूढ़ न समझे मौन
उर अंतर की बात को, समझ रहा है कौन
सारे उत्तर दे रहा, अंतर्मन का मौन
खोजा सागर, वन घना, सँग धरती आकाश
बुद्ध हुआ वो मौन से, भीतर मिला प्रकाश
मौन दिखाए क्रोध भी, मौन जताए प्यार
मौन करे आक्रोश भी, करता मौन प्रहार
नहीं नयन की दृष्टि से, अंतर्मन में धार
केवल मौन समाधि से, दर्शन मिलें अपार
Sonam B Saluja-
रास्ता छोटा और आसान भी लिया जा सकता है,
केवल रास्ता 'सही' होना चाहिए!
Sonam B Saluja-