क्योंकि जो गैर हैं.. उनसे डर नहीं
और जो अपने हैं.. वो घात जरूर करेंगे....।-
चलो ये शिक़ायत भी तुम्हारी दूर करे देते हैं
लो पूछ लिया हमने की तुम्हारे दिल में क्या है
पर क्या है इतनी हिम्मत तुममें
की सरेआम हमारा नाम ले पाओ......!-
या मेरी नज़र का खोंट है
या तो तुझमें दाग़ है
या फ़िर मेरा दोष है.....!-
ऐ शाख से टूटे सूखे पत्ते, हवा के साथ यूं
आवारा कब तलक तू भटकेगा
कुछ होगी मर्ज़ी तेरी भी, की हो आशियां कोई
जहां कभी फिर दो पल को तू कभी ठहरेगा
या मिल जाएगी यूं हीं..शख्सियत तेरी मिट्टी में
उड़ते-बहते बस यूं हवाओं-पानियों संग
बेफिक्र आज और कल से.. दिशा-आशियां से
अपनी मंजिल को तरसेगा, क्या तू यूं हीं भटकेगा.....!-
और बंद इसके दरवाज़े हैं
पीछे इस दरवाज़े के जाने
दफ़न कितने ख़ज़ाने हैं
राज़ है ये जो जानते हैं सब
पर सब इससे अनजाने हैं.....!-
देखें रिश्तों के इस जाल में सुरंग कितने हैं
रंग बिरंगी चादर ओढ़े
देखें इस दुनिया के रंग कितने हैं.....!-
अब भी आकर देख लो जरा
मजबूरियों का फ़साना बोलकर सुनाया नहीं जाता
तुमने कर लिया फैसला
और हम कुछ कह भी ना पाएं
क्योंकि लड़कियों को ज्यादा बोलना सिखाया नहीं जाता.....!-
अब भी कहीं थोड़ा-थोड़ा
जो लिखा था तुमने कभी
मिटकर भी वो मिट ना सका पूरा-पूरा
जान बाक़ी है
अब भी कहीं थोड़ा-थोड़ा
उम्मीद जो थी आने की तेरी
मर के भी मैं मर ना सका पूरा-पूरा.....!-
तू तो ख़्वाब सा है
नहीं शामिल मुझमें
तू तो सौगात सा हैै
शाख से टूटा पत्ता मैं
तू बरसात सा है
मैं हूं अजनबी कोई
और तू मेहमान सा है
है छत तो एक हीं मगर
बीच में दीवार सा है
गुज़र रहा वक्त साथ जो
ये इक इम्तिहान सा है....!-