ख्यालों की क़ैद में गिरफ्त करके,
वो सो गए इस क़दर,
जैसे बात कुछ हुई ही नहीं,
और सब कुछ भी कह दिया।-
कि निचोड़ लीजिये मेरी रूह को,
हम तार तार हो जायेंगे,
तेरे इश्क़ की बारिश से,
हम ज़ार ज़ार हो जायेंगे।
हम ख्वाहिशों के दरिया में
डूबने की चाह रखते हैं,
कि तेरी चाहत के समंदर में
हम खाकसार हो जायेंगे।-
बनाने चले थे ख्वाबी महल,
इक आशियाँ भी न जोड़ पाए,
वो जो हमें अपना कहते हैं,
इज़हार-ए-मोहब्बत भी न कर पाए।
तोड़ देते ज़माने के रस्मो रिवाज,
जो यक़ीनन वो मेरा होता,
हम बस यूँ ही ख्यालों में खोये रहे,
और वो दुनियावी ताने बाने में खुद को उलझाए।-
कि ये शिकवे शिकायतों का दौर है,
पर एहसास मेरे लाफानी हैं ,
क्यूँ मिलाता है ख़ुदा फिर उनसे,
जहाँ क़िस्मत ना फ़रमानी है...-
बहुत मशरूफ़ हैं वो इन दिनों,
उन्हें मग़रूर कहना शायद मुनासिब न होगा…।-
इलज़ामों का पुलिंदा सर कर ,
साक़ी दिल तोड़ गया,
तबाह उसे करके क़ाफ़िर ,
दिल औरों से जोड़ गया।
रोती होगी वो माँ भी सोचकर,
अपनी कोख पर ,
तालीम तो दी सही थी पर,
नालायक छोड़ गया...।।-
हाल-ए-दिल सोच समझकर ज़ाहिर करो जनाब,
यहाँ दोस्त की शक्ल में दुश्मन खंजर लिए बैठे हैं।-
कैसे बताऊँ उसको,
मेरी रूह भी जुड़ी है उससे,
और वो सोचता है,
मै शक्की हो गई हूँ।
क्यूँ दी इतनी एहमियत फिर
जो तेरे सिवा कुछ सोच भी न सकी,
बस अपना फैसला सुनाया
और बेदखल कर दिया।
तुझसे अलग होने का सोचते ही ,
अनायास ही लड़ पड़ती हूँ,
मेरी मोहब्बत की कद्र,
शायद ही तुम जान पाओ।
एक चोट से उबरी ही थी,
फिर उसका कहना अब अपना घर बसाओ
नामुमकिन है कि कर पाऊं।
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उस से दूर होना भी तो मुश्किल था,
कोई तो वजह चाहिए थी बिछड़ने के लिए....
फिर वो शक समझे या बेवजह की जिरह,
कोई तो वजह चाहिए थी बिखरने के लिए।-