तुम एक यात्रा हो-
जहां कुछ छूटने का अर्थ
कुछ मिलना है
जहां हर थकान
एक नयी स्फूर्ति है।
जहां परिवर्तन का अर्थ
मेरा खुद का बदलना है
जहां हर अनुभूति
ईश्वर की मूर्ति है,,,,,
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना-
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ॥
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः
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आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ....
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Dear God,....
धूप बहुत है मौसम जल थल भेजो न
बाबा मेरे नाम का बादल भेजो न
मौलसरी की शाख़ों पर भी दिए जलें
शाख़ों का केसरिया आँचल भेजो न
नन्ही मुन्नी सब चहकारें कहाँ गईं
मोरों के पैरों की पायल भेजो न
बस्ती-बस्ती दहशत किसने बो दी है
गलियों बाज़ारों की हलचल भेजो न
सारे मौसम एक उमस के आदी हैं
छाँव की ख़ुशबू, धूप का संदल भेजो न
मैं बस्ती में आख़िर किस से बात करूँ
मेरे जैसा कोई पागल भेजो न....
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Dear life...
मैं तुझे अपने हिसाब से जीना चाहती हूँ.
क्योंकि मुझे किसी और का हिसाब समझ
नहीं आता....
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चलते ही जाना है वक्त के
रहगुजर पर....
कुछ मोड़ मिलेंगे राहो पर..
कुछ लोग मिलेंगे राहो पर..
कही सफ़लता के किस्सॆ हैं
तो किसी मोड़ पर असफ़लता
की कहानी है...
पर चलते ही जाना है वक्त के
रहगुजर पर....
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सफ़र में हूँ.......
सागर की तासीर लिए,मैं सफर पर चलती हूँ.
साथ उल्लास की नाव है,नये भोर की संकल्प है..
संग है चारों दिशाए मेरी,इरादे हवाओं सी बुलंद हैं....-
बचपन की यादें....
गुजर गयी बचपन की यादे है
मानो कल परसो की बाते है...
वो अकेले बिताये पल भी है
और दोस्तों के खुबसुरत संग भी है
माँ के डाट की सिसकिया भी है
और ठन्ड मे चाय की चुस्किया भी है
खेल मे छुपन छुपाई की यादे भी है
और पुराने भवरो व बाटी की बाते भी है
वो आम के पेड़ो की वो बरगद के झुलो की
गावो की गलियो की शहर की सड़को की
कहानिया अपने रंगरलियो की.......
गुजर गयी बचपन की यादे है
मानो कल परसो की बाते है...-