मुझे वह रूप मत दिखाओ जो हँसता है, सबका दिल जीत लेता है,
जो हर मोड़ पर 'ठीक हूँ' की मुस्कान पहन लेता है।
मुझे वह रूप देखना है जो हारा हुआ तन्हा बैठा है,
अपने भीतर के तूफ़ानों को चुपचाप समेटा है
जो दुनिया को चाहिए वह तेरी पहचान की मुझे ज़रूरत नहीं।
तेरे लबों पर झूठी मुस्कुराहट की मेरी कोई हसरत नहीं।
मुझे चाहिए तेरा अंधेरा,जहाँ तू सच में है अकेला
अपना ज़ख्म दिखा, दिखा टूटे सपनों का मेला।
मेरे पास हैं मरहम बस तू अपने दिल की हालत बता,
तेरे हर चुप को मैं साज़ बना दूँ,बस तू एक बार खुलकर रोता चला आ।-
✒️ शब्दों की मुसाफ़िर ... read more
तुमने जो पिंजरा बुन रखा था, वो वफ़ा की डोरी से गढ़ा था।
मैंने उसे चुपचाप ओढ़ लिया, हर बंधन को प्रेम समझ लिया।
अब इक पिंजरा मैं भी लाऊंगी, त्याग की चुप्पी से सजाऊंगी।
जिसमें समर्पण बहे सदा,परछाई बन तेरा नाम जपे सदा।
मैं तैयार हूं राहों में बिछने को,तेरे मौन से भी स्नेह लिखने को।
क्या तुम भी तत्पर हो बताने को,कि प्रेम है केवल निभाने को?-
साँसें ढलती हैं,
तो जीवन खुद को समेटने लगता है,
जैसे कोई राग अंतिम सुर पर ठहरता है,
या कोई दीपक बुझने से पहले
थोड़ा और उजाला करता है।-
मां काली रौद्र रूप हैं, नरसंहार का दृश्य हैं,
दृष्टि पड़ी जो उन पर, भय समूचे अंग में व्यस्त हैं।
उनके क्रोध की एक ज्वाला, पाप का घड़ा फोड़ देती,
वो विकराल सी काया, लाल आंखें, चेतना झकझोर देती।
यह वो रूप है जो जग ने देखा, ज्यों विनाश की रेखा खींची,
पर जो मेरी आत्मा ने जाना, वो तो ममता की भी परिणीति।
नाश की नहीं प्रतीक मात्र, वो तो नव-सृजन की थाली हैं,
दुनिया को जगाने निकली, मेरी माई काली हैं।
गरिमा जिनकी छांव बनी, निष्ठुरता में भी नीति है,
रणभूमि में खड़ी वही मां, पर जीप पे प्रतीक्षा की रीति है।-
ना किसी की तलब रही, ना कोई एहतियाज,
ख़ुद को संवार कर, ख़ुद ही से मोहब्बत की है।
दिल को भी समझा लिया
अब हर ख़्वाहिश मेरी बंदगी है।-
बोल्ड हूं — पर एडवांस नहीं,हर बात कहती हूं सोच-समझ कर।
तेवर हवा में नहीं उड़ते मेरे,व्यवहार में दिखती हूं तेज़ और मुखर।
फिज़ूल की फ्रेंडली बातें न करना, अपनापन खैरात में नहीं देती।
मेरी जुबां में है नमक-सी धार,जैसी ज़रूरत, वैसी मात्रा में देती।
दिल मेरा हर किसी का घर नहीं,जिसे चाहा, भीतर बसा लिया।
वक़्त की मांग से पत्थर-सा हृदय,तो संवेदना को भी शिला बना लिया।-
"मैं तस्वीरें लेती हूं उन पलों की
जो सौंदर्य से भरे होते हैं...
सौंदर्यता तो बहती हवा-सी है
थमती नहीं,
पर उसे सहेजा जा सकता है
दिल के किसी शांत कोने में।"-
मेरे पास कुछ है तुम्हारा, तुम्हारे पास कुछ है मेरा।
न अक्षर पूरे प्रेम के, न दिल रहा अधूरा।
ठहर गया जो अधरों पर,वो शब्द था क्या मेरा?
या बस गया जो धड़कनों में,वो हिस्सा था तेरा?-
कहो तो… मुझ सा कोई मिला क्या तुम्हें?
कभी कोई मैं भी ढूँढती हूँ — खुद जैसी ही कहीं।
मैं तो सफल न हो सकी, शायद तुम हो जाओ,
जो मैंने खोया, उसे तुम पा जाओ।
हासिल कर लो उसको तो फर्क पहचान लेना
मेरी जैसी मिल जाएं तो मुझे भुला देना
भुला भी सकोगे ? इतना तो मुझे भी है सवाल
शक्ल ढूंढ लो मगर अनुभव का क्या करोगे जनाब
मैने कम उम्र से जीवन का सार सीखा हैं
मेरी कहानी में सिर्फ एक ही लेखिका है-