सब कहते है कि यह कलयुग हैं, यहां कोई निः स्वार्थ प्रेम नहीं करता
वास्तविकता यह है कि
निः स्वार्थ प्रेम को कोई accept ही नहीं करता।।-
किसी दिन हम खो जायेंगे ख़ुद में,
तुम ढूंढते रहना हमें दुनिया जहान में।-
मैं पूछती रही चांद से उसके चमकने का कारण
मगर वह अपने मद में इतना चूर कभी अपने आकार को बढ़ाता तो कभी घटता
वास्तविकता से दूर सुबह होते ही फिर कहीं आसमान में घूम हो जाता।।-
मुसीबतों के जाल में फंसी जिन्दगी मेरी
कभी यहां कभी वहां, फैली हर कहीं
हाथ देके समेट लो मोहन मुझे, तुम ही आखिरी उम्मीद मेरी।
जय श्री राधे कृष्णा-
मैंने ख़ुद को बिखरते देखा है, हर दिन पत्ते सा झड़ता देखा।
कभी शिकायत नहीं की किसी से, मैंने ख़ुद को दूसरी की खुशी के लिए लुटते देखा।
शायद हम फालतू है सभी की जिन्दगी में, तभी तो हमेशा ख़ुद को अकेला देखा है।।-
मुझे डर है कहीं बिखर न जाएं
अपनों की भीड़ में तन्हा हो न जाएं
अभी होश नहीं ख़ुद को संभालने का
कहीं मदहोशी में सब कुछ खो न जाएं
दूसरों की खुशियों को अभी गले लगाते है
अपनी खुशियों को कहीं पीछे छोड़ आते है
वास्तविकता से ख़ुद को हर बार छुपाते हैं
मिथ्या की ओढ़नी ओढ़ पूरे जग में नाचते हैं
मुझे डर है कहीं बिखर न जाएं
अपनों कि भीड़ में तन्हा हो न जाएं।।-
हुई गलतियों को माफ़ करना, सदा अपने हृदय से मुझे लगाए रखना
जानती हूं नादानियां बहुत है मुझ में, मेरी हर नादानी को अपने आंचल से छुपाए रखना, कोई उठा न पाए मेरी नादानियों का फायदा सदा इसका बात का ध्यान बनाए रखना।
बेटी हूं आपकी, सब कुछ आप पर ही छोड़ा है, मेरी जीवन की डोर सदा अपने हाथों में थामे रखना।।
जय श्री राधे कृष्णा-
थाली में परोस देते हैं हम ख़ुद को उसके सामने
तभी जिस चीज के हकदार है, वहां तक नहीं पहुंच पाते।।-
हार गई हूं कान्हा मुझे अपनी गोदी में सुला लो
नहीं चाहिए किसी का प्रेम बस आप मुझे अपने आंचल में छुपा लो
दिल और दिमाग़ से बस आपकी हो जाऊंगा
आपके नाम के सिवाय किसी और का नाम न ले पाऊं।।-