Somanshu Priyadarsi   (प्रियदर्शी)
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Joined 24 February 2017


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Joined 24 February 2017
11 MAR AT 1:19

, निगाहें भीग न जाए,
नुमाईश दर्द की हो तो लोग, नमक रगड़ के जाते हैं।।

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25 JAN AT 1:52

इस तरह तेरे नज़रो से, नज़र चुराते हैं,
छुप छुप के बस तुझे ही, निहारे जाते हैं।
पलकें बंद कर के, तुम्हे पास बुलाते हैं,
और पलकें खोल कर, लफ़्ज़ों से, कागज़ पर,
तस्वीर बनाते हैं तेरी।।

हर एक हर्फ़ से, तस्वीर सजाते है तेरी,
सिहाई में घुल के, तस्वीर बनाते हैं तेरी।।

~ प्रियदर्शी

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17 AUG 2023 AT 2:00

उसकी शर्माती हँसी और लज्जाती आँखों ने,
एलान किया हैं,
कि "अभी" तुम पर उसका आ गया,
ये मासूम "जिया" हैं।।

~ प्रियदर्शी

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13 JUN 2023 AT 0:04

, और महरूम कर गए,
दोस्ती में इतनी मगरूरियत भी, अच्छी नहीं होता।।

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12 JUN 2023 AT 0:21

,
है एक घनघोर सन्नाटा,
जिसकी आरज़ू तो बहुत सी हैं, मगर कुछ कह नहीं पाती।
जहाँ हक़ीक़त धुंधली,
और मन के मनुहार सच्चे हो जाते हैं।
हैं बहुत कुछ और कभी कुछ भी नहीँ, दोनों के दरमियाँ,
मगर हैं शून्य सा एक रिश्ता,
जो कभी धनवान करती हैं,
कभी ख्वाब बेज़ुबान करती हैं।

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27 APR 2023 AT 19:55

Ab koi classes nahi honge,
Koi aana jaaa nahi hoga,
May I come in nahi hoga,
Koi assignment nahi hoga.
Wo kuch nahi hoga,
Jisse hum door bhaagte the.
Hum chahte the jo jaldi khatam ho jae,
Aur aaj ye sab khatam ho raha hai,
Aaj ye sab khud door bhaag raha hai,
To aisa kyun lag raha hai,
Ki ek baar fir class ho jae,
Fir se professor ka koi mazak ho jae,
Kuch naya, kuch purna ehsaas ho jae,
Kuch boring si, kuch khaas si,
CLASS ho jae...

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25 APR 2023 AT 2:44

महफिलों में रक़्स नहीं करती,
मेरे लफ़्ज़ों की आबरू,
ये जज़बातों का मामला हैं,
हमराहों संग होता हैं....

जब होगी कभी सिक्कों की खनक,
और जज़्बाती हर लफ्ज़ की,
सही क़ीमत अता होगी,
तब शायद ये कलम की आबरू,
दो रोटी की इनायत पर,
बाज़ारू हो जाएगी...

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20 MAR 2023 AT 1:09

उस हसीन के शहर से,
ऐ हवा, उसके लबों की लहक ले आना,

जो जल जाए तेरे होंठ उस लहक में,
तो कुछ नहीं,
बस उसकी महक ले आना।।

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19 MAR 2023 AT 2:16

उड़ जाते हैं जो पुराने से कागज़,
उसमे भी खोई, कोई कहानी हैं,
बेपरवाह कागजों पे आज फिर से,
हुई सिहाई के मन की, मनमानी हैं।
फिर कुछ शब्दों के छीटों से,
टूटे दिल की टूटी निशानी हैं,
सिहाई की धारा से शोभित,
कोरा सा कागज़ हुआ फिर आसमानी हैं।
आँसू का मुस्कुराता अफसाना,
कागज़ के दामन पर कोई पशेमानी हैं,
बेपरवाह कागजों पे आज फिर से,
हुई सिहाई के मन की, मनमानी हैं...

~ प्रियदर्शी

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19 MAR 2023 AT 1:54

भी कट जाते आराम से,
अगर तेरी यादों में कोई बेवफाई ना होती...

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