क्या बात थी क्या ज़माना था,
नई बात थी शज़र पुराना था।
ऐसी क्या धड़कन बन गई ज़ुबां मेरी,
कि नज़र ख्वाब थी और दिल दीवाना था।
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और हौसलों से ये आकाश चूम लिया..।।
तुझे क्या चाहिए ज़िन्दगी,
और मुझे क्या देना है।
जहां से गुज़रना है,
वहीं ख़ाक होना है।-
तुझे लिखते-लिखते ए ज़िन्दगी,
एहसास हुआ है यह मुझे।
कि तुझे ढूंढते-ढूंढते,
मैंने लिखना शुरू कर दिया।
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तमन्ना इतनी सी है,
में उसकी सदाक़त से वाकिफ़ रहूँ।
रोता है जब ये दिल,
उसकी हक़ीक़त से वाकिफ़ रहूँ।
दिन ढले या ख़्वाब जगे,
उसकी मेहरबानियों से वाकिफ़ रहूँ।
जी रही है जो ज़िन्दगी,
उसकी हर नज़्म से वाकिफ़ रहूँ।
मेंह की इस ग़ज़ल में,
उसके हर ग़म से वाकिफ़ रहूँ।
-Somakshi
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ये इंतज़ार भी ख़त्म होगा,
दूरियों का पहाड़ भी खत्म होगा।
जब से उल्फ़त भरी नज़र से उसने देखा है,
इस दिल का आराम भी ख़त्म होगा।
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मेरी नज़र में छुपी हुई किताब को पढ़ लो,
सारी ख़्वाहिशों का आज ही पूरा हिसाब कर दो।-
फुरसत मिले तो कभी खुद को पढ़ना,
दिल में दबी हुई अवाज़ को सुनना।
समझना मेरी एक-एक बात को कुछ ऐसे,
मेरे लिखे हुए अफसानों की कलम तुम बनना।
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अजब रात है,
अजब बात है।
ख़्वाब अधूरे हैं,
ये चाँद फिर भी साथ है।
आलम बदला सा लगता है,
इस जहाँ का मुझे।
जो रात चारों तरफ घुली है,
पर आँखों मे फिर भी सुब्ह की आस है।
-Somakshi
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ये राहें भी क्या कमाल करती हैं,
जवाब ढूंढने निकलते हैं।
ये सवाल करती हैं,
आज़माना बखूबी आता है इन्हें भी।
हर रोज़ का जो हिसाब रखती हैं,
थक गए थे जिन एहसासों को सहेजते-सहेजते..
सूनेपन में भी ख़्वाहिशें हज़ार रखती हैं।
-Somakshi
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