Solanki Harshita  
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Joined 13 October 2018


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26 AUG 2022 AT 8:43

उगता है सूरज हररोज,
गिराकर उस चांद को,
फिर भी हर रात,
निकलता है वो चांद,
गिराने उस आग को।
क्षितिज तक की लंबी हो राह,
उम्मीद से बड़ी होगी चाह।
हौसलों पे खड़े सपनों से सजे,
फासले नहीं देखते चाह पे जो अडे।

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28 APR 2022 AT 20:22

वो स्वयं स्वरुप शक्ति का,
सम्मान उस अस्तित्व का।
वो खडग सी अंगार है,
हर प्रहार की वो ढाल है।
है पांचाली सा स्वमान वो,
कुरुक्षेत्र की बनी तलवार जो।
मां सीता सा चारित्र्य वो,
शक्ति से बनी संहार जो।
कुदरत की जो भाषा है,
जीवन की अभिलाषा है।
है वो नदियों सा नीर,
नारी नक्षत्र की है नींव।

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31 MAR 2022 AT 18:33

शुरू हुई थी कहानी यहां,
बदला था मोड़ उसने जहां।
सहमी सी वो प्रहर थी,
आंखें थोड़ी नम थी।
शोर हर तरफ़ था,
फिर भी मन खामोश था।
मंजिल के उस दोर पे,
लाखों की उस भीड़ मे,
जो सच पे ठहरें थे,
वो सच से ही परे थे।

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1 JAN 2022 AT 12:23

कही धुप सी लहर थी,
कही ठंडी सी प्रहर थी।
बिन मौसम की बारिश थी,
हर नमी को छूपा रही थी।
सपने कुछ अपने थे,
कुछ ने अपने भी खोये थे।
खेल तो वो खेल रहा था,
ऊपर से जो सब देख रहा था।
खिलौनों को टूटता देख कर,
शायद खुद भी बिखर रहा था।
बिखरते बदलाव में,
बदलें हम भी कुछ ऐसे,
बिखरना ही भूल गए,
जूड़ गये ही कुछ ऐसे।

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18 DEC 2021 AT 16:46

उस एक प्रहर,
रुक जायेंगी हर नज़र।
नीला यह आसमां होगा,
ख़ुशी से बरस रहा होगा।
वो लकीरें जमीं की,
आज़ाद कर देंगी तब।
खुश्बू खुद की फैला कर,
उड़ने को मजबूर कर देंगी तब।
हर सांस सहम जायेंगी,
खुद में ही खुद महक जायेंगी।
आंखों की नमी कम होंगी,
खोज उसकी भी खत्म होगी।
मंज़िल थमेगी कुछ कदम,
बस, उस एक प्रहर
बस, उस एक प्रहर।।

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30 SEP 2021 AT 12:12

रूक जा घायल परिंदे कुछ पल,
भरले थोड़ी उड़ान हमारे संग।
तूफान से यारी तुम्हारी है,
जज्बा तो हमारा भी भारी है।
जानती हूं एक नहिं है सफर,
गुज़ारिश नहीं किसी डगर।
हाल तो तेरा भी वही है,
मेरा नहीं फिर भी सही है।
तूझे आसमां में उड़ कर,
ज़मीं को हैं पाना।
हमें ज़मीं पे रह कर,
आसमां को हैं छूना ।
एक ही हालात पे,
प्रहर के कुछ पांव तले।
फ़र्क बस इतना कि,
कुछ नहीं है फ़र्क ही।

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29 SEP 2021 AT 10:24

મુઠ્ઠીની ગોદમાં આકાશને ઝીલી,
અશ્રુથી નદીઓને વહેતી કરેલી.
અધરોના આધારે ધરા જન્મેલી,
શબ્દોથી જેમાં કૂંપળો ફૂટેલી.
શ્રવણ સંગમથી શાસ્ત્ર શાસ્વત,
દૃષ્ટિ દુર્ગમ ક્ષિતિજ સમ યથાવત.
વાત્સલ્ય વૈભવ હૈયે છલકાયું,
સ્પંદન માત્રથી અસ્તિત્વ સર્જાયું.
શબ્દ અશક્ય સામર્થ્ય છે એવું,
'સુદર્શનધારી' ઉપનામ છે જેનું.

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7 SEP 2021 AT 11:30

कहानी है यह,
किरदार कौन ? पता नहीं !!
गहराई की गोद में,
जैसे ख्वाबो की सुबह नहीं।
फासलों की डगर पे,
बस चलने की आस लिए।
मुखौटे की दुनिया में,
पहेचान का जैसे पता नहीं।
जूनून की ज़िद में,
हौसलों को हाथ लिये।
समंदर के बीच में,
किनारे की जैसे खोज नहीं।
अंधेरे की आग से,
क्षितिज को ढूंढते हुए,
किरदार की खोज में,
कहानी का ही पता नहीं !!!

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21 JUL 2021 AT 16:51


ख्वाहिशों की कस्ती पे,
किनारे को छुना था।
शराफ़त की सोच पे,
समंदर को सिंचना था।
धागे से धागा जोड़ कर,
इतिहास दोहराना था।
ख्वाहिशों की खोज में,
खुद ही खो जाना था।
ना जीत का जूनून था,
ना हारने का ग़म कहीं।
कल था शायद...
हैं वो आज भी।
वक़्त था वो कल भी,
आज भी है वक़्त ही ।।!!

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1 MAY 2021 AT 11:27

वो सितारे आज भी कायम है,
जो गिरते हुए भी चमकना नहीं छोड़ते।
मिलते है आज भी ऐसे परिंदे,
जो बिना पंख भी उड़ना नहीं छोड़ते।
रिश्तों में आज भी है गुंजाइशें,
फिर भी निभाने की चाह नहीं छोड़ते।
मंजिल की राहें आज भी गहरी है,
उम्मीद की चाह पर चलना नहीं छोड़ते।
कुछ रातें आज भी अंधेरे से भरी है,
रोशनी भरी सुबह का इंतजार नहीं छोड़ते।
कहीं चल दे कुछ कदम, कहीं रुक जा कुछ पहर,
हौसलों की डगर पे, जिंदगी की यह चहल।

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