नहीं था विश्वास स्वयं पर
न ही ज्ञान जरूरी समझा
हमेशा रहा गैरों पर भरोसा,
विश्वासघात से घायल होकर
भी विश्वास कायम रखा
वहीं से मेरी असफलता
की कुंजी ने साज़िश रची
अब है तो भरोसा खुद पर
ज्ञान की शक्ति .....
भगवान भरोसे
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हमें थोड़ा कमज़ोर ...
थोड़ा संकोची होना ही चाहिये,
एक बेहतर इंसान में,
ये कमज़ोरियां न हो तो
वह शैतान बन जाता है।-
किसी से नहीं उम्मीद ,
अब ज़िद खुद से है...
मन को शांत रखने के लिए,
दिल सुलझाकर रखना है..।-
भूलना था तो ये इकरार किया ही क्यों था
दिल उनको ढूंढ़ता है,गम का श्रृंगार करके,
आँखे भी थक गई हैं, अब इंतज़ार करके
मरके ही अब मिलेंगे ,जीते जी न मिल पाए,
लो आ गई उनकी याद ........-
यूँ तो आसां नहीं,वक्त निकल जाने पर
अपनी अपनी राह पकड़ लेना
पर रिवाज़ यहीं है दुनिया का
मुमकिंन तो नहीं था , यूँ नज़र अंदाज़ करूँ
दुनिया के साथ चलना है तो गुस्ताखी माफ-
चाय और आप एक जैसे थे
नापसंद
पता ही न चला
अब
दोनों के वगैर तो
नहीं रह पायेगें-
वक्त का ये परिंदा रुका है कहाँ,
मैं था पागल जो इसको बुलाता रहा,,
चार पैसे कमाने मैं आया शहर,
गाँव मेरा मुझे "याद"आता रहा ।।-
रूठे हुए को मनाना ज़िंदगी है,
दूसरों को हँसाना ज़िंदगी है,
कोई जीतकर खुश हुआ तो क्या हुआ,
सब कुछ हारकर मुस्कुराना भी तो ज़िंदगी है ।।-
समेट लिया है खुद को मैंने,
अब बिखरने का भाव नहीं...
है चेहरे से मुस्कान नदारद,
पर किसी से अलगाव नहीं
हाँ.. है हल्की सी चुभन
पर दिखने वाला घाव नहीं...
यहाँ जुवां पे है मिठास बहुत,
पर मीठा सा लगाव नहीं...-