अपनी नाराजगी को लफ़्ज़ों में कहने चले थे हम,
तुमने लबों से अपने मुझे ख़ामोश कर दिया।-
"क्या तुम अब भी याद करते हो मुझे ?" उसने अपनी छोटी-छोटी आंखों को बड़ा करते हुए पूछा।
"नहीं तो।" उसके होंठों ने जवाब दिया और आँख के एक कोने से बह निकली एक बूँद ने जता दिया कि वो 'उसे' कभी भूला ही नहीं।-
और अब जब मुद्दतों के बाद तुम यूँ सामने हो मेरे,
तो तुम्हारी आँखों में डूबने की बजाय तुमसे तुम्हारी शिकायत कैसे करूं?-
और सिर्फ तुम्हारे होने के अहसास भर से,
परेशानी सारी भूल मुस्कान आ जाती है अधर पे।-
आंखों में बंद समंदर तो न जाने कब से रहा होगा,
सिर्फ तुम्हारे जाने से ही थोड़े न ये सैलाब बहा होगा।-
"ठीक है, जब दोनों ही यही चाहते हैं फिर क्या दिक्कत है, अब अलग होना ही ठीक है। है न?" बड़ी बेतरतीबी से मेरी तरफ देखते हुए वो बोली।
"हाँ, हाँ.. क्यूँ नहीं। अगर इसी में तुम्हारी खुशी है तो यही सही।" मैंने भी रूखेपन से जवाब दिया।
"वाह जी वाह, अब इसमें भी मेरी ही खुशी देखने का बहाना मार रहे हो।" कुछ झुंझलाते हुए उसने कहा।
"क्यूँ न देखूँ तुम्हारी खुशी? और इसमें बहाना कैसा? हाँ माना कभी-कभी गुस्से में कुछ भला-बुरा कह देता हूँ मैं, लेकिन ये तो तुम भी अच्छे से जानती हो कि तुम्हे ऐसा कुछ भी कहने के बाद मैं खुद पर ही गुस्सा करता हूँ और अगर आज मेरे किसी खराब रवैय्ये की वजह से तुम जाना चाह रही हो तो मैं तुम्हें क्यूँ और किस हक़ से रोकूँ। बस अब जाओ यहाँ से, अभी नहीं तो कम से कम कुछ दिन बाद खुश तो रहोगी और मेरा ये बिना बात के हर बात पर गुस्सा करना भी नहीं झेलना पड़ेगा तुम्हें।" ये कहकर मैंने मुंह घुमा लिया था ताकि कहीं वो मेरी आँखों में आये पानी की चमक न देख ले।
"अच्छा तो क्या हमेशा गुस्सा ही करते हो? हर बार गुस्सा करने के बाद जो इत्ता ज्यादा प्यार करते हो वो क्या तुम्हारा भूत करता है।" उसने रुंधे गले से मेरे कंधे पर अपना सिर रखते हुए झूठमूठ वाले गुस्से से मेरे पीठ पर हल्का हाथ मारकर कहा।
और अगले ही पल सारा गुस्सा, सारा कड़वापन यूँ गायब हो गया जैसे कुछ हुआ ही न हो।-
क्या कहूँ?
कैसे कहूँ?
और क्यूँ कहूँ?
तस्वीर कौन सा मेरी किसी बात का कोई जवाब दे देगी।-
मैं अब भी कमबख्त इस मोहब्बत के धोखे में क्यूँ रहूँ इसकी वजह दो,
या तो मेरे ख्यालों से निकल जाओ या फिर मुझे भी अपने ख्यालों में जगह दो।-
और फिर एक रात शुरू..
काली, घनी, अंधेरी रात..!
बिल्कुल वैसी ही अंधेरी जैसी बिना तुम्हारे मेरी जिंदगी है।
एकदम घुप्प अंधेरी, स्याह ज़िन्दगी..!-