Amazing DMY of the Millennium
2022
2-2-22— % &-
This coming february cannot come in our life time again.
Because this year's February has;
4sunday
4monday
4tuesday
4wednesday
4thursday
4friday
4saturday
This happens once every 823yrs. This is called 'Miracleln.— % &-
The person I am
I am the people I meet,
The things I see,
The objects I admire,
And the person I wanna be.
I am the books I read,
The songs I listen,
The lies I weave,
And the truth that lies within.
I am the words are speak,
And words you use to influence me,
I may seem same or different,
Depending on how you see.
I'm a little like her,
I'm a little like him,
I am same as you,
But still different as you've been.
I am a little like the person I'll be tomorrow,
And a little like person I was yesterday,
But what makes me different
Is how I am today
I can be anyone I want to,
But I choose to be me,
As it's the small things that define me,
That not everyone could see!— % &-
Panic people sell and face loss but
Strong people hold and finally wins.-
Poetry,
to a stifled psyche
a breathe of air fresh.
Poetry,
The rhythm of a storm beaten heart.-
मेरे बाद मुझ से भी बेहतर होंगे
सब तो नहीं कुछ तो बेहतर होंगे
मैं लिख कर जाऊँगा इन्तेक़ाम अपना
न लिख सकूँ तो होने को उससे भी बेहतर होंगे
मेरे जीवन अज़ीज तू तो एक रोज मुझे छोड़ जाएगा
जब तक तू है तुझ से न कोई बेहतर होंगे
मैं देखता हूँ बड़ी ग़ौर से कई फ़सानो को
फिर सोचता हूँ कोई तो बेहतर होंगे
पहले हर चीज को परखना सुन्नत है हमारी
न परखते होंगे वो लोग जो मुझ से न बेहतर होंगे
मेरे बाद मुझ से भी बेहतर होंगे
कुछ तो नहीं कुछ तो बेहतर होंगे।-
कहीं आवागमन नहीं, दिल बेचारा लाचार है।
और मन अपाहिज बुद्धि है जो विस्तारपूर्वक विराम ले रहा है। मानों के कोई शुद्ध बुद्ध ही नहीं। एक ही सोच में मन जैसे वृद्धा आश्रम में आश्रित हो गया हो जैसे।
जैसे परस निर्जिव विकलांग का रूप धारण कर लिया हो। अब कोई शुद्ध बुद्ध नहीं। हजारों रास्तें अपना चुका हो जैसे मन मनाने का। मानों जैसे छोटे पौधे पर पत्ते का प्र निकलते ही बकरियां चर जाती हो। स्वरूप जीवन उसी धारा में विचलिन्त हो चुका हो जैसे। मानों के मन, बुद्धि, शरीर संपूर्ण रूप से कार्य करना त्याग दिया हो।
पूर्ण रूप से मानव विकलांग पड़ गया हो जैसे। सूझ बूझ टाट पड़ा हो। अब सुधार का कोई चारा नहीं।
ऐसा मानो जैसे कि हर चीज उसे लांग का चला जाता है। हरा थका मानव मानो की मृत्यु की आस लगाएं न जीने की तपस्या कर रहा हो। और मृत्यु उस लाचार को ललचा रही हो जैसा कि उस मनुष्य को आत्मा अब वर्षों उसकी अपाहिजगी पर तड़पना छोड़ना चाहती है।
अच्छे खासे नेक मनुष्य देखते देखते आंखों के सामने से विलुप्त होता नजर आ रहा है जिसकी कोई जाने की आहट गम जैसी भनक भी न मिली हो पहले जैसे अचानक दुर्ग्रस्त देखा जा रहा है जो बेहद काल्पनिक लगता है।
पर मौत कभी भी बुरे लोगों के आस पास नहीं भटकता। मौत भी डरता है बुरे मानवता से, पापी मानव से तथा उनके गिरेबां को हाथ लगाने से।
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कोई आवाह रुख़ नहीं मिलता
सब कुछ मिल जाता है फिर भी सब कुछ नहीं मिलता
मैं खुद को खोजूँ कैसे
खुद ख़ोज हुँ तभी कुछ नहीं मिलता
मिल जाता है सब कुछ बिन माँगे
जो रब से माँगू वो सचमुच् नहीं मिलता
एक बीमार हुँ कई इलाज़ हैं
तरह तरह का बीमार हुँ बस एक ही इलाज़ है
यह बात अलग है कि सब कुछ अलग है
मैं ख़ुद को अलग लिख दूँ यह बात भी अलग है
उतनी अलग नहीं जितनी क़िस्मत अलग है
इस चमन में अब कोई एक पुनिन्दा नहीं जिसे दिल से चुन सकूँ
ये मन की बुलंदी है हमारी के मन में सिर्फ़
मैं हुँ रब है माँ है।-