जब तुम चाहोगे चलना
कितने ही बहाने मिलेंगे रुक जाने को
कुछ पुरानी बातें याद आएगी
पुराने वाले चाहेंगे तुम्हें कैद कर लेना
लेकिन तुम्हें सब नकारना है
क्योंकि तुम्हें चलना है
कहीं पहुंच जाने के बाद
देखना मुड़कर
तुम्हें भी लगेगा कितना सोनिक था सब
-सौदान सिंह नागर
@nagar_poetry_— % &-
हर कोई संभावनाओं की खिड़की से
झांक लेना चाहता हैं
क्योंकि उसके बाहर आसमान दिखता है
जहां सपनों के पंछी उड़ते हैं
उन्हैं देख हर कोई उड़ना चाहता है
पर वो कैद है चारदीवारी में
बस खुली है संभावनाओं की खिड़की ।
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सब कुछ तय कर दिया जाता है
किस्मत की किताब में
फकत
कुछ पन्ने खाली छोड़ दिए जाते हैं
मेहनत के लिए
उनको भर देना ही जीवन है
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तुम मिलोगे ना मुझे
मैं बड़ी दूर से आया हूं
कहीं नकार तो ना दोगे
इस डर को साथ लाया हूं
पर मैं उम्मीदों पर कायम
तुझसे मिलने
देख तेरे गांव आया हूं
मैं घूम रहा हूं चारों ओर
तुम नजर क्यों नहीं आते
क्या डर है तुम्हें दुनिया का
या थोड़ा शर्माते हो
पल-पल विचलित होता मन
सब्र मेरा टूट रहा है
तुम मिल जाओ ना अब
बिरह में यह मन डूब रहा हैं
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तुझसे मिलने तेरे गांव आया हूं
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प्रेम का वशी में
एक आस लेकर आया हूं
देख तुझसे मिलने को
तेरे गांव आया हूं
मैं तुझसे मिलने को
तेरे गांव आया हूं
तुम मिलोगी मुझे
इस आस में आया हूं
निहार रहा हूं
तेरे गांव की गलियों को
ढूंढ रहा हूं वो जगह
जहां प्रेम का बसेरा है SWIPE 👉
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चलो ढुंढते हैं वो जहान
जहाँ मुस्कुराहट का खजाना हो
रूह से रूह मिले जहाँ
इन चहरो का फसाना ना हो
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मैं किसी बात का सामना करू और बुरा बन जाऊ
मुझे मंजूर है
लेकिन शांत रहकर अपने मन को विचारों का कब्रिस्तान बना लू
ये मुझे मंजूर नहीं
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अनुमान ना लगा ए नागर इन निगाहो का
कितने ही राज दफ़न हैं समन्दर की गहराई में
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दुबक कर बैठ गया बचपन अन्दर ही किसी कोने में
ए जिंदगी
तेरी उलझनो ने एक मासूम को उम्र से बड़ा बना दिया
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