संतोष पाठक  
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Learner, Educator & Thinker
Joined 24 May 2019


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When time passed!

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आजीवन इंतजार

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घड़ी घूरती समय को, समय बढ़े निर्द्वन्द्व,
घड़ी समय की संगिनी, समय है मस्त मलंग।

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ढक लेती हैं,
भावनाएँ, बुद्धि और विवेक को, जैसे
बादल, सूर्य को।

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नैतिकता साथ निभाएगी,
जीवन की छोटी सी नौका,
नैतिकता पार लगाएगी।

नैतिकता का पतवार सबल,
नैतिकता कि अदृश्य सा बल,
विकट का काट दिलाएगी,
जीवन की छोटी सी नौका,
नैतिकता पार लगाएगी।

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प्रेम की कहानी फैलती है,
पर डूब नहीं पाती,
प्रेम की गहराई तक।

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प्रेम निखरता है जैसे फूल,
चहकाता-महकता है मन के आंगन को,
बिखर जाता है, जैसे फूल।

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इश्क़ फैला है, इन हवाओं में,
सांसो में भर‌ लिया जाए,
महक गुलाब की भर लें, अपनी बाहों में,
इससे पहले कि वह बिखर जाए।।

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इतना मजा भी अब मजा नहीं देता,
बस चले तो, मस्ती को बांट दूं सबको।

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कलम का कमाल, करता है कायाकल्प,
विद्या- विनम्रता का अबतक नहीं विकल्प।

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