संजीव सक्सेना   (संजीवनी)
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देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें।।
Joined 22 September 2019


देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें।।
Joined 22 September 2019

तू तो हसीन है ही
तेरा गुस्सा भी इतना हसीन हैं
कि दिल करे
तुझे हरदम तंग करता रहूँ।

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जलते थे जो लोग
हमारे तुम्हारे रिश्ते से,
तुम्हारी बेवफाई ने
उन्हें सुकून बहुत दिया है।

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जो हमें
समझ न सका, उसे हक़ है
वो हमें
बुरा ही समझे।

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हम गरीब इतने हैं कि
अपनी सांसें भी हमारी नहीं हैं
और
अमीर इतने हैं कि
तीनों लोकों का मालिक हमारा है।

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राम राम जी

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मेरे इरादे
मेरी तक़दीर बदलने को काफी हैं,
मेरी किस्मत
मेरी लकीरों की मोहताज़ नहीं।

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न जाने क्यों मचल जाता है
ये दिल मेरा,
एक तेरे आने से पहले,
एक तेरे जाने के बाद।

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फिजां में घुल रही है महक अदरक की,
आज सर्दी भी चाय की तलबगार हो गई।
अदाएं तो देखिए बदमाश चायपत्ती की,
जरा दूध से क्या मिली, शर्म से लाल हो गई।
थोड़ा पानी रंज का उबालिये,
खूब सारा दूध ख़ुशियों का,
थोड़ी पत्तियां ख़यालों की,
गम-ओ-मायूसी को कूटकर बारीक कीजिए,
हँसी की चीनी मिला दीजिये,
उबलने दीजिये ख़्वाबों को कुछ देर तक।
यह ज़िंदगी की चाय है जनाब,
तसल्ली के कप में इसे छानकर,
घूंट-घूँट कर मज़ा लीजिये।।

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जय काशी विश्वनाथ जी

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नमः शिवाय

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