न जाने किस ख्वाब-ए-मुकम्मल में,
मुझे तू अजीज मिली।
खुदा की इबादत थी शायद या
मेरी कोई हसरत दबी-सी।।
तू करिश्मा है कुदरत का या
कोई सवाब- ए-मुकद्दर मेरा!
तुझे हासिल करने की औकात,
सारी कायनात में नहीं।।
सजदे में भी नाम लूं तेरा,
तो भी कम है 'मां'
तुझसे बड़ी रहमत उस खुदा के पास भी नहीं।।
इतनी हसीन नेमत बरसाई है उसने मुझ पर,
तुझे देकर
मन्नतों का जखीरा चुरा लिया है मैंने,
किसी को भी ये इल्म नहीं।।-
लोग नहीं बदलते,
वक़्त बदलता है
और वक़्त बहुत कुछ बदल देता है!
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जितनी तेज़ी से जल रही हूँ मैं
एक दिन शायद राख भी नहीं बचेगी... !-
प्रेम में दुःख अनन्त है...
मगर प्रेम की अनुभूति ही मनुष्य को अनायास अनन्तता की ओर ले जाता है!-
क्या क्या दुःख बतायें हम तुम्हें जानिब
और क्यों बतलायें तुम्हें ये दुःख ?
जो गुज़र चुका उसको सुनाएं..
या गुज़र रहे को रोयें हम ?
यूँ दरारों को भरते रहें
या कुछ दरारें छोड़ दें हम ?
नया नहीं है कुछ भी
ना ही कम या ज़ियादः ये दुःख..
ऐसा क्या बतलायें हम
जो कभी ना हो गुज़रा दुःख?
कितना है संजीदा या
कितना हास्यास्पद ये दुःख?
सब कुछ तो है झूठ ही
तो कितना सच्चा है हमारा दुःख?
बंद कमरे से निकली चीख़ों का
या बंद कर दी गयी चीख़ों का दुःख?
भीगी हुई चादरों का
या जमी हुई आंखों का दुःख?
टूटे हुए सपनों का
या सपने न बुन पाने का दुःख?
जल रहे इंसानों का
या जल रहे चौक-चौबारों का दुःख?
इसका दुःख उसका दुःख
हर किसी के हिस्से का एक दुःख
ऐसा क्या बतलायें हम
जो कभी ना हो गुज़रा दुःख?
सब कुछ तो है झूठ ही
तो कितना सच्चा है हमारा दुःख?
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चुप रहो, मत बोलो !
सब बोलेंगे तो सुनेगा कौन ?
और सुन कर भी क्या कर लेगा कोई?
यहाँ वहशियों की सत्ता है,
तुम बोलोगे तो तुम्हे भी चुप करा दिया जाएगा !
तुम्हारे सवाल मेरे सवाल सब एक ही हैं..
मगर इनके जवाब क्या दे पाएगा कोई?
जो उन्होंने किया और जो वो कर सकते हैं
क्या उन्हें भेद पाएगा कोई?
नहीं!
तुम कुछ नहीं कर सकते सिवाय बोलने के !
मोमबत्ती जलाने के,पोस्टर्स लगाने के,डीपी बदलने के !
तुम्हारे ये सब करने से क्या समाज बदलेगा?
जो सम्मान बिखरा है, जो विश्वास टूटा है,
क्या वह दोबारा बन पाएगा?
जिसने चीख चीख कर अपना दम तोड़ दिया
क्या वो दोबारा कभी बोल पाएगा?
अगर कुछ बदलना ही है
तो कभी किसी राह में ,
जब कुछ लोग किसी लड़की को घेरे,
जब एक नपुंसक किसी अकेली लड़की को छेड़े,
जब कोई बस में खड़ी लड़की को दबोचे,
जब किसी सुनसान सड़क पर कोई किसी का पीछा करे,
जब कोई लड़की के कपड़ों पर अश्लील टिप्पणी करे,
जब किसी के घर से किसी के चीखने की आवाज़ आये,
जब कोई अपने बदन पर लगे खरोचों के निशान छिपाये,
उस वक़्त, तुम्हारा फ़र्ज़ है कि तुम बोलो !
अगर बोलने का इतना ही शौक है तो,
उस वक़्त,
चुप रहो मत, बोलो !-
बांटा था कुछ दोनों ने ही
फर्क महज़ गरज का था
जो तुमने बांटा वो वक़्त था
जो मैंने बांटा वो खुद मैं था
जो बांटा तुमने वो मेरा हुआ
जो तेरा हुआ वो खुद मैं था
जो मेरा था वो गुज़र गया
जो तेरा गुज़रा वो खुद मैं था,
वापस आये हो फिर आज तुम
उस वक़्त की तलाश में,
लौटा पाओगे मगर क्या
वो जो मेरा तुम ले गए ?
अब पूछना उसी से तुम
अपने माज़ी का पता
वो संग जिसके गुज़रा था
वो मैं भी अब गुज़र गया
जो गुज़रा नहीं वो तू ही है
जा जाके फिर से ढूढ़ं ले
ठहरा हो शायद अब भी वहीं
जिस रोज़ था वो गुज़र गया
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