संगीता अशोक कोठारी   (संगीता अशोक कोठारी)
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आत्मा अज़र अमर हैँ, शरीर नश्वर हैँ पर अच्छे कर्म साथ चलेंगे
Joined 18 February 2019


आत्मा अज़र अमर हैँ, शरीर नश्वर हैँ पर अच्छे कर्म साथ चलेंगे
Joined 18 February 2019

🇮🇳कोहली का टेस्ट क्रिकेट रिटायरमेंट 🇮🇳
दिल का एक कोना आज नम हो गया,
मैदान पर शेर ने दहाड़ना बँद कर दिया,
हमेशा खेल में जीत जिसका जज्बा रहा...
श्वेत वस्त्रों में अब उसने खेलना बंद कर दिया।

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क्या सच में लड़की होना गुनाह होता हैं?
मानवीय अधिकारों का रोज हनन होता है,
क्या भाषा,पहनावा,मर्यादा सिर्फ नारी का दायरा हैं?
ख़ैर छोड़ो, जाने दो तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है!
लड़के हो ना तो भला कौन रोक टोक करता है!
तुमसे गुज़ारिश है कुछ बातों का ध्यान रखना,
आपस में सम्मान देकर ही सम्मान पाया जाता,
कोई मेरे खिलाफ़ बदतमीजी करें तो मेरा साथ देना,
और जीवन के सफर में पग पग पर मेरा हाथ थामना।

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झाँकता अतीत.
अपनी चाहत को आसानी से भुलाया नहीं जाता,
मनमार के ज़िन्दगी में आगे बढ़ना पड़ता,
अपनों की ज़िम्मेदारियों का बोझ ढ़ोते-ढ़ोते ही..
अपनी चाहतों पर अंकुश भी लगाना पड़ता।

कुछ लम्हों को बस महसूस किया जाता,
जो आँखों में उमड़ते लेकर रूप अतीत का,
ना कह सकते ना ग़म बाँट सकते किसी से.
उन राज़ को सिर्फ दिल में छुपाकर रखा जाता।
एक उम्र गुजर जाती उन्हीं यादों के सहारे,
जवानी के बीते साल वापिस नहीं आते,
साथ बिताये वो पल रह-रहकर कचोटते,
पछतावा होता काश कि हमसफ़र बन सकते!!

एक गुलाब काफ़ी है तेरी याद दिलाने के लिये,
अतीत के यादगार पलों को जीवंत करने के लिये,
जो होता अच्छे के लिये होता सोच मन को समझाते,
ज़िन्दगी का भी तो भरोसा नहीं कब साँसे थम जाये!!
📝संगीता अशोक कोठारी 📝

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बिना पूछे बिना बताये किसी को,
अपने निर्णय औरों पर नहीं थोपो!

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भूल के भी कभी कदम ना रखना..
चकाचॉध भरी कल्पनाओं की गली में,
मृगमरिचिका ही राहों का लक्ष्य होगा..
मंज़िल मिलेगी ही नहीं यदि भटक गये।

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कभी देखिये दुनियाँ को गौर से,
स्वार्थ के पुलिंदे इंसान भरे हैं मैलों से,
सब मतलबी इंसान,कुछेक को छोड़ के...
बाक़ी यहाँ हर कोई लबरेज हैं उपदेशों से।

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तुझमें दिखते चाँद सितारें..
बच्चे तुझे मैं बहुत प्यार करती हूँ,
तुझे ज़माने की नज़र ना लगे...
कान के पीछे काला टीका लगाती हूँ,
माँ का दर्जा मिला आते ही तुम्हारे..
करबद्ध प्रभु का शुकरान अदा करती हूँ।

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लम्बी रातें बेहद मनभावन लगती,
दिनभर की थकान शैय्या थाम लेती,
क्रोध या ग़म की बातें किसी से कह ना पाये वो..
तकिये में मुँह छिपाकर घुट-घुटकर रुदन में निकलती।

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सोते हुए भी कुलांचे भरती हैँ अक्षरों की उड़ान,
मन मस्तिष्क की उहापोह को समेटता शब्दों का जाल,
कभी तंज कभी तारीफ़ अभिव्यक्ति को कर देता आसान,
मनमुटाव करके घाव भी देते चाहे भले ही अक्षर हैं बेजान।

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लड़ाई-झगड़ा माफ़ करो,
मन का मैल साफ़ करो,
कुछ नहीं कहना है मुझको...
बस चिल्लाकर साहूकार मत बनो!!

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