यूं ही बैठे बैठे रेत के महल को बनाती बिगाड़ाती क्यूं हैं
जो तेरा है तेरा ही रहेगा कुछ पल और आज नहीं तो कल
जब भय का साया डराएं तो साहस की लौं जगाएं कुछ पल और आज नहीं तो कल
जब क़दम तेरे डगमगाए तो मंजिल की आश लगाए कुछ पल और आज नहीं तो कल
जब राही करें व्यंग्य तो तू छोड़ उनका संग कुछ पल और आज नहीं तो कल-
free thoughts😇
express my feeling in magical
word🤪 enjoying imagi... read more
कितनी सस्ती है ना वो प्रेम के दो बोल में ही बिक जाती है और कितना निर्लज्ज हैं वो उसके प्रेम को कमजोरी समझ लेता है
कितनी सस्ती है ना वो त्याग समर्पण कर भी मूर्ख रह गई और वो अपनी चपलता को अभिमान समझ लेता है
कितनी सस्ती है ना वो अपमान को हि मान समझ बैठी , कितना निर्लज्ज हैं ना वो उसके प्रेम को दीन हीन समझ बैठा
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वट ने किया तुम को चित्त
इट ने दिया तुम्हें पीट
अपनी भाषा को कर के अनफिट
क्यूं करते हो भाईयां घिट पिट
विदेशी भाषा का कर अभिमान
कहां चले तुम सीना तान
अपनी माटी देख काहें लज्जा रहें हों
मन को गुलामी की जंजीरों से कर दो मुक्त
कर हिंदी भाषा को अलंकृत
ताकि हो अपनी भाषा गौरवान्वित
यदि तुमको है भाषा पर अभिमान
तो नहीं है तुमको सच्चा ज्ञान
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जीवन में भावों का मिश्रण कम हुआ की आप संवेदना हीन हो गयें
भावों के रंगों को अपने जीवन से करकें यूं बेरंग
जीवन के मंजिल पर भटकते राहगीरों से आप संवेदना हीन हो गयें
रंग बिरंगे भावों से भर जीवन के कोरे कागज़ को संवेदनशील बनाओ
जीवन को भावों की सुंदर बागियां सा सजाकर तुम भी संवेदनशील बन जाओ
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यूं पलकों को झुका कर आंखों के गहरे राज को छुपाया ना करों
जो दिल में कोई दर्द हो मुस्कुरा कर दर्द को छुपाया ना करों
हजारों गमों को दिल में दबाकर यूं चेहरा हम से छुपाया ना करों
ख़ामोशी तुम्हारी दर्द बयां करती है यूं गमों को छुपाकर हमें बेगाना न बनाया करों-
अहम का भोग त्याग मेरे माघव प्रेम से भोग लगाएं मेरे माघव कैसी लीला रचाई मेरे माघव
युद्ध में त्याग शस्त्र बन रथी मीत को राह दिखाएं मेरे माघव कैसी लीला रचाई मेरे माघव
बन प्रस्तावक बीच सभा में त्याग राज्य कर पांच गांव भर मांगे मेरे माधव कैसी लीला रचाई मेरे माधव
निर्लज्ज वीरों की सभा दौपदी का चीर बचाया मेरे माधव कैसी लीला रचाई मेरे माधव-
रण में हैं योद्धा तू धीर रख धीर रख
ना डर ना हट बस डट धीर रख धीर रख
सामने हों चाहे असमान शत्रु धीर रख धीर रख
दृढ़ संकल्प हो ना डर ना हट बस डट
रण में हैं योद्धा तू धीर रख धीर रख
शस्त्र तेरा वीरता तू धीर रख तू धीर रख डटा रह तू रण में , ना डर ना हट बस डट तूं धीर रख धीर रख-
लाभ केंद्रित हुआ मनुष्य स्वभाव हुआ राक्षस सा
दमन कर शोषण कर किया भयंकर विनाश
मरता विवेक देख हो रहा हा हा कार सूझे ना जतन जब तक ना हो कोई अभाव
प्रकृति मां की निर्मल स्पर्श को किया निर्ममता से भेद और मूर्ख समझ रहा है आपने आप को विशेष-
अहम वहम के बीच फंसी ये दुनिया है पूरी गोल
जो समझ वो बचा जो नहीं समझा वो वहीं खड़ा
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