Sneha Singh   (स्नेह★°°)
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Joined 5 November 2017


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Joined 5 November 2017
21 APR 2018 AT 2:32

क्या करूँ आखिर वक़ील जो हूँ, दिल नहीं दे सकती।
पर गर शौख दलीलों का रखते हो, तो स्वागत हैं।।।

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2 DEC 2021 AT 20:32

वैसे हूँ तो मैं पूरी "बिहार",
पर कई शाम...
दिल "बनारस" होता है।

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21 MAY 2021 AT 17:24

वो पहली चाय, दिसम्बर की रात।
कुल्हड़ पकड़े,
तुम्हारे सर्द ठिठुरते हाथ।
दिल में ना जाने,
कितने सवाल, कितने ज़ज्बात।
एक कप चाय,
वो पहली मुलाकात,
साढ़े नौ मिनट की मुलाकात।।

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10 MAR 2021 AT 19:13

अंगिका की आंच सी मैं,
मिथिला की तुम "मिठास" हो।

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21 JAN 2021 AT 16:46

पता है,
तुम मेरे कमरे का वो आरामदायक कोना हो।
जहाँ बैठकर मैं रोज़ पढ़ती हूँ,
लिखती हूँ नगमें प्यार भरें,
तुम्हारी शाम की चाय के साथ।
और बातें करती हूँ कुछ ख़ुद से, कुछ तुम से।❤️।

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2 OCT 2020 AT 13:43

अच्छा हुआ जो चौराहे पर लगी -
गाँधी की मूर्ति में, ऐनक पर शीशे नहीं।
ना ही महराना के हाथ धारदारी तलवार।
वरना आज बेशक,
गाँधी शर्मशार और महराना हिंसात्मक हो जाते।।

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15 JUL 2020 AT 23:13

स्वांग की चाशनी वाली 'चाय' में,
हाय !!..
वो प्यार वाला बिस्कुट कहीं डूब गया।।

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5 JUL 2020 AT 23:55

इंद्रधनुष के रंग कभी हमें भी पसंद थे।
अब तो जिंदगी काले - सफ़ेद में तंग है।।

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24 JUN 2020 AT 11:57

पापा ❤️
"शून्य से सर्वोच्च का सफ़र है, मृत्युंजय"

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4 MAY 2020 AT 22:49

जब पुरुष को भगवान बनाओगे,
तो हे... स्त्री!!, दुर्दशा तय है तुम्हारी..।।।

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