Sneha Shrivastava   (Sneha)
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A phoenix who rises from her ashes
Joined 12 April 2020


A phoenix who rises from her ashes
Joined 12 April 2020
2 JUL AT 0:24

जब अवसरों का सैलाब आएगा,
ठान लेना बस, जब भी वह दिन आएगा,
दिन - रात की परवाह तुम ना करना,
चल देना निरंतर, ना तुम ठहरना,
कई बार ऊँची लहरें टकराऐंगी,
पटकेंगी, तुमको इम्तहान सम समुद्र में धर दबोचेंगीं,
किंतु ना हार मानना, यह विपदा भी निकल जाएगी,
देखना फिर एक सुबह ऐसी भी आएगी,
जब हाथ जोड़कर, सामने हारी चुनौती होगी,
और उम्मीद तुम्हें गले लगाने आतुर खड़ी होगी।

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29 JUN AT 22:58

Life opened its comforting arms to embrace,
Embraced me with all comfort and love,
Loved me, also gifted beautiful surprises,
Surprises took me to wonder its care,
Care to take me to new avenues,
Avenues, I cherished with it together,
Together, we both leapt with faith.

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23 JUN AT 1:03

किन्तु निगाहें बोल पड़ीं,
जो बच गया,
वह शर्माती मुस्कान,
चेहरे की रौनक,
इठलाती जुल्फें,
कांपते होंठ,
लापता शब्द,
सभी ने, मानो साजिश से,
सब बयान कर दिया।
किन्तु इत्तेफ़ाक कुछ ऐसा हुआ,
कि अनजाने, सब समझ गए,
और जिनको समझना था,
वह नासमझ ही रह गए।

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10 JUN AT 23:27

एक रेस्टोरेंट में, कार्तिकेय कई महीनों से, लगभग आधा घंटे को रोज़ आता। वह एक कप काॅफी पीकर चला जाता।
आज, वह ठिठकी कदमताल के साथ काउन्टर तक पहुँचा। सहमी आवाज़ में उसने कुछ बुदबुदाया।
लोगों के बेबाक स्वरों में उसके शब्द खो गए।
"सर, मुझे कुछ समझ नहीं आया। आपका रेगुलर ऑर्डर लगवा दूँ?" वह सुरीली आवाज़ में बोली।
"नहीं, नहीं, मैं ऑर्डर नहीं दे रहा," वह बोला।
"क्या आपको यहाँ का स्वाद पसंद नहीं आया? आप बताइए, मैं अभी ठीक करवाती हूँ।"
"नहीं, वो बात नहीं है।"
"फिर क्या बात है, सर?"
"मैं, म मैं..."
"एक बर्गर!," पीछे से एक बच्चे की आवाज़ आई।
"सर, मैं इनका ऑर्डर ले लूँ," वह बोली।
"जी।"
'आज नहीं तो कभी नहीं कार्तिकेय, तुम्हें बोलना ही होगा,' कार्तिकेय के मन में यह चल रहा था।
"हाँ, तो क्या कह रहे थे आप?" उस लड़की ने मुड़कर पूछा।
"मैं कह रहा था......" शोर में फिर सुनाई नहीं दिया।
"सर, थोडा ज़ोर से बोलिए," उस लडकी ने फिर पूछा।
"मैं आपको पसंद करता हूँ, क्या आप मुझसे दोस्ती करेंगी?" वह एक सांस में, बहुत जोर से बोल बैठा।
कैप में से झांकती जुल्फें, चश्में के पर्दे को पार करती मृगनयनी निगाहें, कार्तिकेय को समझने का प्रयास कर रहे थे।

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26 MAY AT 4:05

आज आखिरी बार बतलाती हूँ, 
लो गीत विदाई का मैं गाती हूँ, 
ना होगा घर के सुकून का कत्ल रोज़ ही, 
खुल के रह सकोगे बेरोकटोक तुम भी,
सुबह से रात तक जिसे झेलना पड़ता था,
अब ना होगा, वो चेहरा धुआं होगा,
ना ही होंगी वो बेबुनियाद बातें व बहसें,
वो पल पल की समझाइश, ना होगी अब,
कभी भी मनपसंद चेहरों से मुलाकात कर पाओगे,
किसी अज़ीज से, दिल की बात कह पाओगे,
आज पुराने असहनीय रिश्ते से मुक्ति मिलेगी,
तुम्हें जीवन नये बनाने के नये आयाम मिलेंगे,
गलतियाँ अब ना होंगीं, क्योंकि 'वजह' ना होगी,
एक गुजारिश है, हो सके तो वह पूरी करना,
जो कभी किया नहीं, वो अब ना करना,
मुझे खोने का आडम्बर, तुम ना करना,
लो आज आखिरी गीत विदाई का मैं गाती हूँ,
तुमको आज पूर्णतः मुक्त, मैं कर जाती हूँ।

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21 MAY AT 21:40

वक़्त वक़्त की कशमकश हो गई,
जैसे शायरी में रदीफ़ और काफ़िया हैं,
वैसे ही ज़िन्दगी ठहरी या बदल रही है,
विचारों के सैलाब की कुछ यूँ रवानी है,
कि जिन्दगी बेगानी सी हो चली है,
जैसे एक शायर की मुहब्बत, उसकी शायरी होती है,
वैसे ही ये ज़ालिम जिन्दगी, मेरी दिल्लगी हो चली है,
जिन्दगी कुछ ऐसे शायरी हो गई है,
मेरी वक़्त वक़्त की कशमकश हो गई है।

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16 MAY AT 3:49

कच्ची सड़कें, संकरी गलियाँ,
बरगद, पीपल व नीम के विशाल वृक्ष,
वो चाँदनी रातों से लंबी मुलाक़ात,
और तारों की बीच छिडी छेड़छाड़,

एकमात्र दुकान की रंग बिरंगी चीज़ें,
बच्चों की निराली व मदमस्त टोलियाँ ,
वो सावन के लंबे लहराते खुशनुमा झूले,
और रात में दीए की निडर, लहराती लौ,

वो सबसे बड़े पेड़ के नीचे उम्रदराज़ चबूतरा,
घर के अंदर घूमते भजन व ढोलक के स्वर,
वो गोबर से लीपा हुआ ठंडा बरामदा,
और एक विराट कुआँ व उसका अमृतुल्य जल,

ना जाने कहाँ गया वो सुकून भरा जीवन,
कौन कहाँ, यह भी ख़बर अब न किसी को,
वो मुझे छोड़ आगे बढ़ गए या मैं पीछे रह गई,
और अब अक्सर तन्हाई ही साथ रहती है।

कहाँ वो लोग जो सच में मुस्कुराते थे,
आडंबर से परे, जो अंदर थे, वही बाहर थे,
वो जो जीवन के आनंद से सरोबार थे,
और जो ‘मेरा तेरा’ से परे, ‘हम’ की मिसाल थे।

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13 MAY AT 23:40

It was a usual night with clear sky, along with stars twinkling at each other.
"I caught you," said Sam while playing.
"No, it's not fair. You are now tall enough to see me," Sheba complained in her melodious voice.
"That's not my problem if someone's tiny mini," Sam chuckled. "Come on now," he said while turning towards Sheba.
As he held her hand, a pleasant breeze waved the surrounding tulips as if they were dancing together to the whispering of crickets, leaves, and the surrounding silence. The tulip bulbs were gazing at the shine of Sheba's sparkling face, and so was the Sam for a while.
That was the moment Sam and Sheba knew that they were more than friends.
Years passed, people changed, and so the world also! Sheba also changed. Her old age kissed her with memory loss.
During the whole time, the only thing that was constant was those beautiful tulips and the lovestruck Sam and Sheba.
Every evening, both of them sat, hand in hand amongst the tulip bulbs. Sam used to daily recall the glorious last seventy years they cherished together while Sheba relived the memories again. She felt all that love and care, adding up one more memory.

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11 MAY AT 23:59

जो अपना अंश काट, जीवनदान देती है,
और बात यहीं तक शेष नहीं,
वो तो ता उम्र हमें सहेजती है,
माँ ही तो संवारती, प्यार से पालती,
हमें निश्चल, निस्वार्थ प्रेम देती है,
कहाँ कोई इस पूरे ब्रह्माण्ड में ऐसा,
जो उसके जैसा प्यार कर सकता है,
माँ ही सुकून, शांति, व साहस मेरा,
दिल की बात कैसे वो समझ लेती है,
कई आए, कई गए, और कई आऐंगे,
उसके जैसा साथ, ना कोई निभा पाया है,
एक ऐसी रचना भगवान की वो,
बिना उसके, साथ मेरे, खालीपन का साया है।

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11 MAY AT 12:58

Which gives great shade along with breeze,
Keeps her roots firm in values,
Embraces lovingly just like drops of dew,
Gifts lovely 'flowers' called 'beautiful lairs',
Shares blissful 'fruits' of her own share,
Always forgive us for our mistakes,
Gives us courage as the backbone in our breaks,
Blesses us with life by taking in all the pains,
Encourages us to stand again and again,
Nurturing and caring all as earthly goddess,
Shaping the family culture, right from genesis.

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